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________________ ३४८ अलबेली आम्रपाली थे। पर किसी भी प्रश्न का समाधान नहीं हो रहा था । उसने सोचा, देवी आज तक इस रूप में किसी भी पुरुष से मिलने नहीं गई. आज क्या हो गया है ? जिसका मन अपने स्वामी की स्मृतियों से विलग नहीं बना, वह आज किस आशा से इतने शृंगार कर उन्मत्त हो रहा है ? वास्तव में माविका मन-ही-मन व्यथित हो रही थी। रथ गतिमान् था । वह क्षत्रियकुंड ग्राम की ओर वेगगति से बढ़ रहा था । आम्रपाली बन्द रथ की जाली से मार्गगत वृक्षों को देख रही थी। बाहर के वृक्षों को देखने की किस कल्पना ने आम्रपाली के चित्त को तन्मय बना डाला था, यह माविका समझ नहीं पा रही थी । लगभग आधा मार्ग तय हो चुका था। माध्विका को इस प्रकार का मौन असह्य हो गया । उसने मृदु स्वर में कहा - "देवि ! आपके निकट वर्षों से रहने पर भी.... "मैं वृद्ध नहीं लगती, यही तो ।" आम्रपाली ने मुसकराते हुए प्रश्न किया । "नहीं, अवस्था का प्रश्न नहीं है। मुझे तो यही आश्चर्य हो रहा है कि इतने दीर्घ परिचय के बाद भी मैं आपके मन को पहचान नहीं सकी ।" "माधु ! जब स्वयं के मन को पहचानना भी कठिन होता है तो फिर दूसरे के मन को कौन पहचान सकता है ? किन्तु अभी यह प्रश्न तेरे मन में क्यों उभर रहा है ? क्या तुझे मेरे मन में अल्पनीय वस्तु दीख रही है ?" "हां, कुछ ऐसा ही ।" "संकोच क्यों? मैंने तो तुझे सखी माना है, बोल ।" "आप कभी भी किसी भी पुरुष से मिलने नहीं गईं, फिर आज...?" बीच में ही आम्रपाली दूसरे के हृदय में हलचल पैदा कर दे, ऐसी हंसी हंसती हुई बोली - "माधु ! मैं किसी पुरुष से मिलने तो जाती ही नहीं ।" "तो अब हम कहां जा रही हैं ?" माध्विका ने पूछा । "मैं एक रूप के प्यासे व्यक्ति को रूप का दर्शन कराने जा रही हूं । सुदास रोज मुझसे मिलने आता और मुझे देखकर मौन भाव से चला जाता। सबकी तरह वह भी उपहार रख जाता । मुझे उसके मौन भाव के प्रति हमदर्दी हुई, इसीलिए मैंने उसका निमन्त्रण स्वीकार किया । वह क्या चाहता है, तू जानती है ?" 11 "नहीं, परन्तु वहां एक रात आप "पगली कहीं की। युवराज जयकीर्ति के साथ जो रातें मैंने बिताई हैं, उन्हें भूल जाने वाली योगिनी नहीं हूं. फिर मैंने इसे कहा था- एक रात रहने आऊंगी. सुदास ने केवल एक आलिंगन ही चाहा है एक चुम्बन ही चाहा है''।”
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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