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________________ ३॥ अलबेली आम्रपाली रय नगरी में पहुंच गया था। कुछ ही समय पश्चात् रथ सप्तभूमि प्रासाद के पास आ पहुंचा। द्वार पर खड़े रक्षकों ने देवी का जयनाद किया। रय प्रांगण में खड़ा रहा। देवी आम्रपाली माध्विका के पीछे-पीछे रथ से नीचे उतरी। पुत्र को प्राप्त करने का प्रयत्न जैसे देवी आम्रपाली कर रही थी वैसे ही मगधेश्वर बिंबिसार भी इस प्रयोजन के लिए ही वैशाली की यात्रा कर रहे थे। वे अभी वैशाली से दस कोस की दूरी पर एक गांव में रात बिता रहे थे। उनके मन में पुत्र को प्राप्त करने की भावना थी। इसी प्रकार प्रियतमा आम्रपाली को भी साथ में ले चलने की आशा भी थी। आशा ही मन का जागरण है। ऐसी ही आशा सुदास के मन में भी थी। कल संध्या की वेला में देवी आम्रपाली का रूप भवन को और जीवन को उज्ज्वल करेगा। पांच लाख स्वर्ण मुद्राओं के तुच्छ उपहार से मिलेगा संसार की सर्वश्रेष्ठ संदरी का मदभरा आलिंगन' 'आनंददायी चुंबन..। आशा के मोती सबके मन में उभर रहे थे. उछल रहे थे। माशा किसकी फलेगी? वास्तव में आशा प्रकाश नहीं, अंधकार ही है। अनेक बार आशा में उछल-कूद करने वाला मनुष्य अंधकार में ही भटकता रहता ६६. एक मटका सुदास आज प्रातःकाल से ही अपने भवन को सजाने में व्यस्त था। आज संध्या के समय विश्व की सर्वश्रेष्ठ सुंदरी भवन में आने वाली थी... रूप, यौवन और ऊष्मा का थाल लिये आने वाली थी। सुदास के हृदय में आशा की झल्लरी खनखना उठी थी। कल रातभर उसे नींद नहीं आई, जबकि पास की शय्या में फूल जैसी सुकोमल पद्मरानी गहरी नींद ले रही थी। मध्यरात्रि के पश्चात् पत्नी की ऐसी गहरी नींद को देखकर सुदास ने नि:श्वास छोड़ा। उसने मन-ही-मन सोचा, केवल रूप को देखकर मैंने बहुत बड़ा धोखा खाया है। मैंने रूप देखा, पर रूप के साथ आवश्यक ऊष्मा का विचार ही नहीं किया और एक रूपवान् पत्थर मेरे भाग्य में आ गया, मेरे अस्तित्व के साथ जुड़ गया। ___ कल मेरे सद्भाग्य की फूल जैसी अलबेली आने वाली है, परन्तु इसके चित्त में कुछ भी हलचल नहीं है। कितनी निश्चिन्त है 'पद्मा के शरीर में हृदय है
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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