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________________ अलबेली आम्रपाली ३३५ सुदास बोला -"परसों यहां संसार का सर्वश्रेष्ठ नारीरत्न आएगा, मैं उसके चरणों में पांच लाख स्वर्ण मुद्राएं बिछोऊंगा । "फिर···?” व्यंग्य में नहीं, स्थिर भाव से पद्मरानी ने पूछा "देवी आम्रपाली रातभर यहीं रहेंगी ।" पद्मरानी ने हंसते-हंसते कहा - "पांच लाख स्वर्ण मुद्राओं के बदले आपको मिलेगा क्या ?" "वास्तव में तेरे में समझ की कमी है सम्राट को भी प्राप्त नहीं है। एक चुम्बन "तब तो आप धन्य हो जाएंगे ?" पगली। मुझे जो मिलेगा वह किसी एक आलिंगन .." "अब कुछ समझी है ।" " किंतु मुझे समझाने जैसा मार्ग तो..." "तू आम्रपाली को देखना उसकी वय कितनी है, यह तू कल्पना भी नहीं कर सकेगी. उसकी पलकों में कविता है उसके अधरों पर अमृत छलकता है... उसे देखकर तुझे अपने पति को प्रसन्न करने की कला सीखनी है ।" " पति को प्रसन्न करने की कला इन सबमें कहां है ?" " तब ?" "यह तो पुरुषों को पागल बनाने का मार्ग है । मुझे किसी को पागल नहीं बनाना है. मैं आर्य सुदास की पत्नी हूं. " तू मुझे भी पागल नहीं बनाएगी ?" "क्यों बनाऊं ?" "मेरे चित्त की प्रसन्नता के लिए..." पद्मरानी हंस पड़ी। वह गंभीर होकर बोली - "स्वामिन् ! क्षमा करें । आपको पागल बनाने का पाप मैं कैसे कर सकती हूं? मैं तो आपको सत्त्वशील देखना चाहती हूं. एक पत्नी का इसके अतिरिक्त और कोई दूसरा कर्तव्य हो नहीं सकता ।" "कर्त्तव्य ! कर्त्तव्य !! कत्तंव्य !!! रानी ! नारी का सही कर्त्तव्य है पति के अनुकूल रहना ।” "आपकी बात सही है नीति, धर्म और संस्कार के मार्ग में ऐसे विलास और प्रमोद के मार्ग में नहीं ।" पद्मरानी ने अपनी भावना और अधिक स्पष्ट कर दी । " तो तेरे कथन का यही अर्थ है कि मेरी बात तेरे हृदय का स्पर्श नहीं कर पाती ?" " आश्चर्य है कि आप जीवन के विशुद्ध सत्य को क्यों नहीं समझते ?"
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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