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________________ ३२६ अलबेली आम्रपाली देवी आम्रपाली ने यह समाचार मगधेश्वर के पास भेजा दूत जब वहां पहुंचा तब मधेश्वर प्रवास के लिए निकल पड़े थे और तब वर्षाकार ने वह समाचार स्वीकार किया था । दूतको यथोचित पारितोषिक दे विदा किया और देवी से कहलाया कि मगधेश्वर प्रवास पर हैं । जब ये लौटेंगे तब उन्हें यह दु:खद समाचार दे दिया जाएगा । किन्तु वर्षाकार का चित्त इस समाचार से बहुत प्रसन्न हुआ। किसी भी दिन मगधेश्वर के विशाल राजपरिवार में उत्तराधिकार के प्रश्न पर महान् संघर्ष खड़ा होता और अब आम्रपाली के बालक की प्रव्रज्या से वह विस्फोट होगा नहीं । बारह वर्ष के अन्तराल में देखते-देखते अनेक घटनाएं घटिक हो गईं। समय रुका नहीं । समय को कोई रोक भी नहीं सकता । समय की इच्छा को कोई कुचल नहीं सकता । हाय ! समय के इस धमधमाहट में एक सुन्दर फूल अपनी समस्त कलाओं से खिल उठा। इसकी खबर न देवी आम्रपाली को थी और न बिंबिसार को थी । पद्मसुन्दरी का लालन-पालन चंपा नगरी में हो रहा था। जब वह तीन मास की थी तब वहां आई थी और आज वह पन्द्रह वर्ष की हो गई थी । उसके अंग-प्रत्यंग से यौवन फूट रहा था। अपनी माता आम्रपाली से भी वह अधिक सुन्दर थी । किन्तु उसकी पालक- माता शय्या परवश थी । पद्मसुदरी इसे ही अपनी माता मानती थी । और पन्द्रवें वर्ष में ही सुदास नामक एक धनकुबेर तरुण के साथ पद्मसुन्दरी का विवाह हो गया । पालक - माता ने अश्रुभरी आंखों से पद्मसुन्दरी को ससुराल के लिए विदाई दी । काल की क्रीड़ा के समक्ष मनुष्य की क्रीड़ा का कोई प्रयोजन नहीं होता । ६६. निमन्त्रण वैशाली से मात्र तीन कोस की दूरी पर क्षत्रियकुंड नामक उपनगर है। वहां आर्य श्रीदाम अपने परिवार के साथ रहता था। वह पूर्व भारत का साहसिक सार्थवाह था । उसके पास अपार धन-संपत्ति थी । वह धनकुबेर था । उसके भवन में प्रचुर स्वर्ण था । वह जैन धर्म का उपासक था । परन्तु धन की उपासना में ही उसका जीवन बीत रहा था । उसके एक पुत्र था । उसका नाम था सुदास । परन्तु श्रीमंत माता-पिता के
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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