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________________ अलबेली आम्रपाली ३२३ से आशान्वित वह पुन: मैरेय, नृत्य और मस्ती में अपनी मनोवृत्ति को स्थापित कर रही थी । उसने अपने पुत्र के लालन-पालन के लिए दो प्रौढ़ परिचारिकाओं को नियुक्त कर रखा था । और ये दोनों परिचारिकाएं पुत्र अभयजित को प्राणों की तरह संजो रखती थीं। ये दोनों परिचारिकाएं तथागत के तेजोमय वलय में आ चुकी थीं और जब- जब तथागत वैशाली में आते तब-तब ये दोनों परिचारिकाएं अभयजित को साथ ले दर्शनार्थं जाती थीं । अभयजित के बालमानस पर भगवान् बुद्ध के उपदेशों की छाप पड़ गई थी । 1 इसके अतिरिक्त अभयजित की शिक्षा के लिए दो आचार्य नियुक्त थे । वे भी बौद्ध धर्मावलम्बी थे, इसलिए शिक्षण में भी बौद्ध संस्कार ही दिए जा रहे थे । माता को धर्म की ओर देखने का अवसर नहीं था वह अपनी मनोवेदना को भूल जाने के लिए रंगराग और मस्ती में ही डूबी रहती थी उसको यह कल्पना भी नहीं थी कि धर्म का आश्रय ही समस्त दुःखों के शमन का उपाय है । आनन्द और मस्ती की शरण तो अस्थायी है । आम्रपाली ने अपने देह-सौष्ठव को बनाए रखा था । वह बत्तीस वर्ष की होने पर भी देखने वालों को नवयौवना ही प्रतीत होती थी। परन्तु काया की कितनी ही सार-सम्भाल क्यों न की जाए, एक दिन वह टूट ही जाती है। एक आघात, एक आशाभंग या एक चिन्ता का तूफान मनुष्य की काया को जबरदस्त धक्का देता है और वह धक्का कभी विस्मृत नहीं होता । ऐसा ही एक मर्मवेधी आघात अलबेली आम्रपाली को लगा और वह तिलमिला उठी । अभयजित ने दसवें वर्ष में प्रवेश किया । आम्रपाली ने सोचा- मैं अपने स्नेह के लिए पुत्र के भविष्य को क्यों नष्ट करूं ? पुत्र यदि अपने पिता के पास रहेगा तो मगध का भावी कर्णधार हो सकेगा पुत्र की कल्याण की भावना से प्रेरित होकर उसने बिंबिसार के पास एक संदेश भेजा - "अभयजित दस वर्ष का हो गया है । आप आएं और अपने अधिकार को ले जाएं।" अनेक वर्षों के पश्चात् आम्रपाली का यह संदेश प्राप्त हुआ था । इस संदेश को पाकर बिंबिसार की मुरझाई आशाओं में प्राणों का नव संचार हो गया । परन्तु वह किसी भी स्थिति में वैशाली जा सके, ऐसा अवसर नहीं था । उसने तत्काल प्रत्युत्तर दिया- ' प्रिये ! पुरुष धर्य नहीं रख सकता, मैं इस बात को असत्य प्रमाणित करना चाहता हूं। मगध के भावी कर्णधार को लेकर त स्वयं शीघ्र ही यहां पहुंच जा । यहां आने के बाद यदि तुझे राजगृही में रहना अच्छा
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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