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________________ अलबेली आम्रपाली ३२१ उससे कभी नहीं रुका। कारण यह है कि काल समझता है कि मेरा एक ही अट्टहास होगा कि काल को रोकने का प्रयास करने वाले चक्रवर्ती भी मनुज द्वारा सर्जित क्षुद्र इतिहास की परतों के नीचे दब जाते हैं। सागरोपम की आयुष्य वाले व्यक्ति भी काल की एक फूंक के समक्ष क्षुद्र जन्तुओं की भांति धरती के एक कोने पड़े रह जाएंगे । काल को कोई रोक नहीं सकता काल का कोई अंकन नहीं कर सकता... काल के साथ कोई हेराफेरी नहीं कर सकता । देवी आम्रपाली और मगधेश्वर के तीन वर्ष पश्चात् मिलन के समय बीते तीन वर्ष बहुत कठोर थे परन्तु उसके बाद जो बारह वर्ष बीते वे मानो नेत्र पल्लव के बारह बार के फटकार के समान अतिशीघ्र बीत गए । बिबिसार का निश्चय अटल था । उसने किसी भी स्थिति में वैशाली जाकर प्रिया से मिलने का मन ही नहीं किया. आम्रपाली को क्षणिक दुःख हुआ भी पर वह पुत्र जन्म के योग से दुःख को भूल गई । उसने पुत्र-जन्म की बधाई देने के लिए मगधेश्वर के पास दो दासियों को भेजा था। मगधेश्वर ने यह समाचार सुनकर प्रसन्नता व्यक्त की और दोनों दासियों को रत्नों से मंडित कर लौटा दिया । आम्रपाली ने कहलवाया था कि आप जैसे ही सुन्दर, स्वस्थ और तेजस्वी बालक को आशीर्वाद देने आप अवश्य ही एक बार वैशाली आएं । इसके उत्तर में बिंबिसार ने बताया - "प्रिये ! माता और पुत्र का स्वागत मैं यहीं करूंगा । एक पिता चोर की तरह आकर आशीर्वाद दे जाए इससे तो अच्छा यह है कि वह हजारों मनुष्यों के मध्य अपनी पत्नी और पुत्र को हृदय से लगाए । " इस संदेश से आम्रपाली को सन्तोष नहीं हुआ उसके भीतर का अभिमान जाग उठा और उसने पुनः वैशाली के कल्याण के लिए अपने सुख और गौरव को भूलने के लिए मन को मोड़ दिया । फिर तो ज्यों-ज्यों काल बीतता गया, अनेक प्रसंग बनते गए । बिंबिसार संग्रामों में व्यस्त हो गया और मगध साम्राज्य को समृद्ध बनाने में लग गया । Satai दिनी के प्रति प्रतिशोध की भावना से प्रेरित होकर उज्जयिनी का अधिपति चंद्रप्रद्योत राजगृही को जीतने अग्रसर हुआ । परन्तु चतुर वर्षाकार की युक्ति के समक्ष उसे भारी पराजय का सामना करना पड़ा। मगध की सीमा पर ही मालवीय सेना से भेड़ हुई और चंद्रप्रद्योत को खाली हाथ लौटना पड़ा । बिबिसार के किरोट पर एक-एक कर अनेक विजय किलंगिया लगने लगीं । मगध के आस-पास के दो-तीन छोटे गणतन्त्र दुवतः नष्ट हो गए और मगध की छत्रछाया में आ गए ।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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