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________________ अलबेली आम्रपाली ३११ प्रबंधक ने एक दासी को भेजकर माध्विका को बुलाया । एकाध घटिका के पश्चात् माविका दो परिचारिकाओं के साथ वहां आ पहुंची। दोनों ब्राह्मण वेशधारियों का स्वागत किया, पुष्पहार पहनाए और बोली - " महात्मन् ! आप मेरे साथ चलें, देवी स्नानगृह में हैं आपसे मिलने के लिए आतुर हैं ।" प्रबन्धक आश्चर्य से देखने लगा। माध्विका दोनों को सप्तभूमि प्रासाद की छठी मंजिल पर ले गयी और देवी के विशेष कक्ष में बिठाकर धनंजय से बोली"मैंने देवी से आपके आगमन की बात कही, तब पहले तो देवी प्रसन्न हुईं, फिर उनमें अभिमान की रेखा उभरी, पर अन्त में देवी ने स्वतः कहा- 'वे कहां तत्काल देवी ने मुझे उपालम्भ दिया । हैं ?' मैंने कहा - 'किसी पांथशाला में आप अभी आ गए अच्छा ही हुआ ।" बिबिसार ने पूछा - "माधु ! देवी कुशल तो हैं न ?” "प्रतिदिन से आज विशेष प्रफुल्लित हैं, परन्तु ।” "क्या ?" "आप दोनों यह वेष दूर कर दें मैं दूसरे उत्तम वस्त्र ले आती हूं। यहां कोई भय नहीं है ।" लगभग एकाध घटिका के बाद बिंबिसार उत्तम वस्त्र धारण कर तैयार हो गया। उसने अपनी राजमुद्रिका धारण की। माध्विका अनेक अलंकार भी आयी । उन्हें बिंबिसार ने धारण किया । घटिका पहले का ब्राह्मण अपने तेजस्वी रूप में आ गया । "नीले रंग की किनारी वाली श्वेत धोती हरित रंग का उत्तरीय चमकीले कौशेय की शोभा और बिंबिसार के बदन पर सदा का तेज ! माविका मुग्ध नेत्रों से महाराज को देखती रही । बिंबिसार ने कहा"देवी स्नानगृह से कब निकलेंगी ?" "आप तो जानते ही हैं कि उनको स्नान में बहुत समय लगता है । फिर अभी आपके आगमन की बात भी मैंने उनसे कही नहीं है ।" "तो उन्हें बता तो दे..." "नहीं, मैं चाहती हूं कि आप अकस्मात् उनके सामने प्रकट हों, तभी विशेष विस्मयजनक होगा ।" " तो मेरी प्रिय वीणा ।" "मैं ले आती हूं." देवी ने उसे अपने शयनकक्ष में ही रखा है कभी-कभी ती भी हैं ।" बिबिसार का मन ये शब्द सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ। वह बोला - " मैं ही तेरे साथ देवी के शयनगृह में आता हूं।" fafaसार और माविका देवी के शयनगृह में आए ।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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