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________________ २२ अलबेली आम्रपाली आचार्य अग्निपुत्र द्वारा आविष्कृत अमरदीपक चिन्तन-गृह के एक कोने में रखा हुआ था। चिन्तन-गृह में प्रवेश करते ही उस खण्ड में व्याप्त बादली रंग की छाया वाले प्रकाश से महाराज चौंके और उनकी दृष्टि उस अमरदीपक पर जा पड़ी। दीपक का प्रकाश इतना तीव्र और मधुर था कि देखने वाले की आंखें घड़ी भर में ही चमकने लगती थीं। एक आसन पर बैठकर मगधेश्वर ने आचार्य शिवकेशी से कहा-"क्या आचार्य देव को मेरे आने का पता लग गया ?" "हां, महाराज ! वे अभी एक प्रयोग कर रहे हैं। उसे संपन्न कर यहां आएंगे" । शिवकेशी ने कहा। प्रसेनजित इस आश्रम में पहले भी अनेक बार आ चुके थे। किन्तु उन्होंने कभी ऐसा दीपक नहीं देखा था। आचार्य की प्रतीक्षा में एक घटिका बीत गई। इस विचित्र दीपक को जानने के लिए उनके मन में अनेक प्रश्न उभरे। पर वे मौन ही बैठे रहे। और तब अस्थिकंकाल के समान क्षीणकाय परंतु अत्यन्त तेजस्वी आंखों वाले आचार्य अग्निपुत्र चिन्तन-गृह में प्रविष्ट हुए। मगधेश्वर ने आसन से उठकर प्रणाम किया। अग्निपुत्र ने आशीर्वाद दिया और एक ओर आसन ग्रहण कर लिया। मृदु हास्य बिखेरते हुए आचार्य ने पूछा-"महाराज ! आपके आकस्मिक आगमन से मन में आश्चर्य उभर रहा है।" "आचार्य ! आप जानते ही हैं कि मेरा चित्त जब अशान्त होता है तब आपके पास चला आता हूं । जब कभी समस्या आती है, तब आपका मार्गदर्शन ही मेरा मार्ग बनता है" । महाराज ने गंभीर स्वर में कहा। आचार्य ने हंसते हुए पूछा- "देवी त्रैलोक्यसुंदरी तो स्वस्थ है न?" "आप द्वारा निर्दिष्ट औषध-प्रयोग के पश्चात् यह चिन्ता मिट गई है। किन्तु मेरी अनिद्रा का कारण वही है" । प्रसेनजित ने कहा। __"महाराज ! बुढ़ापे में नवयौवना पत्नी लाना, घर में बाल-विधवा का होना, पुत्र का विपथगामी होना और ऋणी बनना-ये सब अनिद्रा के कारण हैं । देवी त्रैलोक्यसुंदरी ने क्या कोई हठ किया है ?" "किन्तु हठ से भी एक भयंकर बात हुई है। आपको याद होगा । लगभग सात वर्ष पूर्व मैं अपने दस पुत्रों को साथ लेकर आया था। और उन दस पुत्रों में से गौरवर्ण वाले पुत्र श्रेणिक के मस्तक पर हाथ रखकर आपने कहा था कि यह भविष्य में मगध का अधिपति होगा।" ___"हां, मुझे याद है। मेरा भविष्य-कथन कभी मिथ्या नहीं होगा। क्या राजकुमार को कुछ हुआ है ?"
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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