SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 309
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०० अलबेली आम्रपाली अवसान'वर्षाकार को महामंत्री पद पर प्रतिष्ठित करना । मगधेश्वर की स्थिति वैसी की वैसी रही । जीवक मानता था कि औषधि अव्यवस्था दूर कर सकती है. प्रकृति के परिणामों को नहीं बदल सकती । महर्षि आत्रेय तक्षशिला के आचार्य थे। उनकी देख-रेख में एक लाख विद्यार्थी आयुर्विज्ञान का अभ्यास कर रहे थे । उन आत्रेय गुरुदेव का आवश्यक संदेश आ जाने के कारण कुमार जीवक को तत्काल तक्षशिला जाना पड़ा। उस समय वहां मित्र, पारस आदि देशों के अनेक वैज्ञानिक तक्षशिला में आने वाले थे । आत्रेय उनके सामने कुमार जीवक को एक महान् शल्यचिकित्सक के रूप में प्रस्तुत कर यह दिखाना चाहते थे कि आयुर्विज्ञान की प्रगति कहां तक हुई है। इतना ही नहीं वे सभी वैज्ञानिकों के समक्ष शस्त्रकर्म के प्रयोग भी प्रस्तुत करने वाले थे । महान् वैद्य जीवक ने अभ्यंतर अर्बुद आदि को अग्नि कर्म से नष्ट करने की एक महान् शोध की थी। साथ ही साथ मस्तिष्क को खोलकर उसमें विद्यमान ग्रन्थि को शस्त्रक्रिया से निकाल कर रोगी को मौत के मुंह से बचा लेने की शल्यक्रिया भी सिद्ध कर दी थी। इसमें प्रयुक्त होने वाले छोटे-बड़े शस्त्र उसने अपने ही हाथों बनाए थे । इन सबको उन वैज्ञानिकों के समक्ष प्रत्यक्ष दिखाने के लिए जीवक को बुला भेजा था । और वह मगधेश्वर की आज्ञा प्राप्त कर वायुवेगी अश्वयान में तक्षशिला की ओर प्रस्थित हुआ था । इससे भी बिंबिसार का दायित्व बढ़ गया था । परन्तु इस कार्य को रानी त्रैलोक्यसुन्दरी ने बहुत सरलता से निपटा दिया था। चारों युवराजों को उसने इच्छित धनराशि देकर प्रसन्न कर डाला । चारों युवराज समग्र मगध की जवाबदारी लेना नहीं चाहते थे । जो राज्य का भार अपने पर लेता है, उसके भाग्य में सुख भोग नहीं होता, ऐसा वे चारों मानते थे । इसलिए यह कार्य सरलता से निपट गया। इस कार्य में तरुण महामंत्री वर्षाकार युक्ति बहुत सहायक बनी थी । मगधेश्वर प्रसेनजित चाहते थे कि वे बिंबिसार को अपने हाथों मगध के सिंहासन पर बिठाएं। परन्तु बिंबिसार इसके लिए तैयार नहीं हुआ । वह यही कहता - " पिता की मृत्यु की कल्पना कर राज्य सिंहासन पर बैठना शोभास्पद नहीं होता । पिता के स्वास्थ्य को सुधारने का पूरा प्रयत्न करना चाहिए, यही मेरा धर्म है ।" परन्तु इस धर्म की आराधना वह कर नहीं सका । जीवक के प्रस्थान के तीन महीने बाद मगधेश्वर का देहावसान हो गया । समस्त राजपरिवार, सामंत और मंत्रियों ने बिंबिसार को मगध के सिंहासन पर प्रतिष्ठित किया । कल का वीणा वादक आज मगध जैसे विराट् देश का स्वामी बन गया ।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy