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________________ अलबेली आम्रपाली ..39 २६३ "अभी आ ही रहा हूं ।' मगधेश्वर ने पुत्र की ओर क्षणभर देखकर कहा - "श्रेणिक ! तू इतना दुबला कैसे हो गया ? एक निर्दय पिता के कारण ?” बीच में ही पिता के दोनों हाथ पकड़कर श्रेणिक बोला- - "बापू! ऐसा न कहें आपकी ममता, आपका वात्सल्य, आपका प्रेम यही तो मेरे जीवन की संपत्ति है अब आपका स्वास्थ्य कैसा है ?' " पुत्र ! मैंने शय्या पकड़ी है मुझे लगता है मनुष्य कितना ही महान् क्यों न हो, उसके साथ साढ़े तीन हाथ धरती भी नहीं चलती मैं तेरी इस ममता के बल पर जी रहा हूं।" कहकर मगधेश्वर ने रानी की ओर देखा । बिबिसार ने महादेवी की ओर देखा और तत्काल उठकर उनके चरणों में शीश नमाते हुए कहा- "मां ! मुझे क्षमा करें मुझे ध्यान नहीं रहा । आप कुशल तो हैं न?" रानी ने बिंबिसार का मस्तक चूमा, सूंघा और कहा - " वत्स ! तू आ गया इसलिए मेरा मन निश्चिन्त हो गया । तेरे बिना सारा राजभवन सूना-सूना-सा लग रहा था ।" "महादेवी' बीच में ही त्रैलोक्यसुन्दरी ने कहा - "बेटा ! तू मुझे 'मां' कहकर ही पुकारा कर । महादेवी तो कभी की मर चुकी हैं ।" "मां..." " श्रेणिक ! मेरे हृदय में दावानल सुलग रहा है कल तक वह पाप का दावानल था आज वह पश्चात्ताप का दावानल है । बेटा ! मेरे पुत्र दुर्दम को राजगद्दी मिले, इस दुष्ट हेतु से मैंने क्या-क्या अनर्थ नहीं किया ? और मैंने अपना पुत्र गंवाया ।" कहते-कहते रानी त्रैलोक्यसुन्दरी का स्वर गद्गद हो गया, आंखें सजल हो गयीं । -- श्रेणिक ने विनम्र स्वरों में कहा- - "मां ! जब मुझे दुर्दम के मृत्यु का समाचार मिला तब मन बहुत व्यथित हुआ किन्तु कर्म के प्रभाव को कौन बदल सकता है ? आप अब धैर्य रखें। में पराया नहीं हूं, आपका ही पुत्र हूं।" मगधेश्वर शांति से सुन रहे थे। अपनी प्रिया की आंखों का परदा हट गया है, यह जानकर उनका मन प्रसन्न हो गया । किन्तु वे कुछ नहीं बोले । महादेवी ने श्रेणिक के दोनों हाथ अपने हाथों में थाम लिये । वह बोली"बेटा श्रेणिक ! मेरे पाप के कारण ही तुझे बनवास मिला. अब मैं तुझे कहीं नहीं जाने दूंगी।" - "मां ! अब मैं आपके चरणों में ही रहूंगा ।" बिंबिसार ने कहा । फिर श्रेणिक स्नान आदि से निवृत्त होने के लिए बाहर निकला । उसी रात
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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