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________________ अलबेली आम्रपाली २८५ " बोल । " "पहले आप पत्र पढ़ लें ।" धनंजय ने कहा । बिंबिसार ने स्वर्ण की नलिका की सील तोड़ कर पत्र निकाला और पूर्ण स्वस्थ चित्त से उसे पढ़ा। पढ़ते-पढ़ते बिबिसार के चेहरे पर भावों का उतारचढ़ाव स्पष्ट दिखाई दे रहा था । धनंजय यह सब देख रहा था । पत्र महामंत्री ने मगधेश्वर की ओर से लिखा था । उसमें मगधेश्वर की बीमारी का विवरण था और साथ ही साथ त्वरा से राजगृही आने की बात थी । महामंत्री ने यह भी लिखा था कि मगधेश्वर की बीमारी कब कैसा रूप धारण कर ले, कुछ नहीं कहा जा सकता। साथ ही साथ यह भी लिखा - " आपके देशनिष्कासन की पृष्ठभूमि में मगधेश्वर का क्या आशय था, यह धनंजय से आप जान लें । पत्र के प्राप्त होते ही, एक दिन का भी विलम्ब किए बिना आप राजगृही आ जाएं। मगध राज्य की बागडोर आप संभालें, ऐसी मगधेश्वर की इच्छा है । " बिबिसार ने पत्र को दो-चार बार पढ़ा और विचारमग्न हो गया । धनंजय बोला- "महाराज ! आपके देश- निष्कासन के पीछे आपकी रक्षा का हेतु ही मुख्य था और यह बात आज तक आपसे अज्ञात रखी गई थी । " "रक्षा का हेतु ?" "हां, महाराज! आपको तो याद ही होगा कि जब वीणा वादन का अभ्यास पूरा कर लौटे थे तब आपका महल अचानक जल उठा था ?" "हां, इसीलिए तो मुझे मगध का त्याग करना पड़ा ।" " महल जलाने के पीछे रानी त्रैलोक्यसुन्दरी का षड्यंत्र था। वे अपने एकाकी पुत्र को मगधेश्वर बनाना चाहती थीं । परन्तु वह अभी अल्प वयस्क था, इसलिए रानी अन्यान्य सभी हकदारों का सफाया कराने लगीं। आपको भी इसी प्रकार नष्ट करने वाली थीं । परन्तु आपके प्रति मगधेश्वर की अटूट ममता थी। वे आपको ही अपना उत्तराधिकार देना चाहते थे । वे महारानी के षड्यंत्र से आपको बचाने के लिए आपको इस बहाने निर्वासित किया । ऐसा करने से ही आप महादेवी के षड्यंत्र के शिकार नहीं हुए। आपकी सुरक्षा के लिए मगधेश्वर ने मुझको आपके साथ भेजा था।" बिंबिसार अवाक् बनकर धनंजय की ओर देख रहा था । उसके मन में अनेक प्रश्न उभर रहे थे । परन्तु धनंजय ने वहां की सारी बातें बतायीं । उसने दुर्दम की मृत्यु कथा अथ से इति तक सुनाई और बताया कि महामंत्री ने महादेवी की आशा को कैसे तोड़ डाला तथा वैशाली में जो मौतें हुई थीं, वह सारा परिणाम भी महामंत्री के तन्त्र का ही था, आदि वृत्तान्त सुनाया । "धनंजय ! देश - निष्कासन का कारण क्या तुझे पहले से ही ज्ञात था ?"
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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