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________________ २७२ अलबेली आम्रपाली तारिका पद्मसुन्दरी को लेकर चंपा नगरी की ओर रवाना हो गई। आम्रपाली का भांडागारिक तारिका के साथ चंपा नगरी गया। वहां एक सुन्दर भवन खरीदा और उसमें जीवनोपयोगी सारी सामग्री की व्यवस्था कर तारिका को सौंप दिया । आते-आते उसने तारिका को देवी आम्रपाली ने कन्या के लिए जो-जो कहा था, वह भी बता दिया। पुत्री के प्यार में आम्रपाली पति की स्मृति भी नहीं कर पाती थी परन्तु अब दोनों की स्मति उसके हृदय को व्यथित करने लगी। ५६. प्रत्युत्तर जब हृदय व्यथित होता है तब समय भी शत्र-सा बन जाता है। जब अन्तर में इच्छित सुख का आनन्द होता है तब समय कैसे बीत जाता है उसकी खबर भी नहीं पड़ती। ___ आम्रपाली के अन्तःकरण को दो व्यथाएं मथ रही थीं.-एक तो फूल-सी सुकुमारी कन्या के वियोग से उत्पन्न व्यथा और दूसरी स्वामी के विरह से उत्पन्न व्यथा । समय को बिताना कठिन हो रहा था। ___ माध्विका देवी को सतत प्रसन्न रखने के लिए प्रयत्नशील थी। संगीतकार भी देवी के कलामय प्राणों को जागृत करने के लिए विविध प्रकार की रागरागनियां प्रस्तुत कर रहे थे । दुःख को भूलने के लिए मनुष्य को कुछ तो करना ही पड़ता है । देवी आम्रपाली ने उत्तम मैरेय का पान प्रारम्भ किया ! ____ इधर उज्जयिनी में नंदा और बिंबिसार के दिन सुख में बीत रहे थे । दिन के उदय और अस्त का उन्हें पता भी नहीं लगता था। पता लगे भी कैसे ? दोनों एक-दूसरे में समाने के लिए उद्यत थे । समय बीतता गया। काम सेना का मन जयकीर्ति के लिए तड़फ रहा था। इधर उज्जयिनी का तरुण राजा चंद्रप्रद्योत सिंधु-सौवीर की यात्रा सम्पन्न कर उज्जयिनी आ गया था। कामसेना को राजभवन में जाना पड़ा था। धनदत्त सेठ का व्यवसाय विस्तृत हो गया था। जहां धन होता है वहां व्यवसाय स्वतः बढता है । उसका ठाट-बाट पूर्ववत हो गया। वे ही मुनीम... वही प्रतिष्ठा और वे ही व्यापारी । व्यापारी धन से भी अधिक प्रतिष्ठा चाहता है । धनदत्त सेठ ने अपने जीवन में कभी अनीति का आश्रय नहीं लिया था। धन आया, गया, पर सेठ ने कभी प्रामाणिकता नहीं छोड़ी। वे मानते थे कि जहां नीतिमत्ता है वहां बरकत है। बिंबिसार का अपना व्यक्ति दामोदर भी उसी दुकान में काम करने लगा था। और उसी दिन ।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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