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________________ अलबेली आम्रपाली २६६ तक्षशिला विश्वविद्यालय में 'वर्षाकार' और कुमार जीवक का शिक्षा-अभ्यास पूरा हो गया था। उनको यहां ससम्मान लाना था। इसलिए मगधेश्वर के प्रतिनिधि के रूप में धनंजय को भेजने की बात सोची गई थी। धनंजय ने युवराज बिंबिसार को जो समाचार कहे थे, उन सभी समाचारों को सुनकर महामन्त्री और मगधेश्वर बहुत सन्तुष्ट हुए थे। ___ मगधेश्वर ने महामन्त्री से कहा-"अब अवसर है, हमें युवराज को यहां बुला लेना चाहिए । चौदह-पन्द्रह मास बीत गए हैं। अब यहां का कोई भय नहीं महामन्त्री बोले-"महाराज ! अभी तक यह कल्पना नहीं की जा सकती कि भय निर्मूल हो गया है । सुना है कि त्रैलोक्य सुन्दरी कामरूप देश के एक वैद्य का प्रयोग कर रही है । यदि यह प्रयोग सफल हुआ और महारानी सगर्भा होगी तो युवराज पर मौत की छाया वैसे ही मंडराती रहेगी । कुछ समय और बिताना चाहिए। ___ मगधेश्वर ने कहा--"आपकी बात सही है । परन्तु महादेवी को सन्तान हो, यह सम्भव नहीं है।" महामन्त्री ने हंसते हुए कहा-"कृपावतार ! लालसा सबसे बुरी वस्तु है । आपने तो सुना ही होगा कि चालाक स्त्रियांसगर्भा न होने पर भी पुत्र का जन्मोत्सव मना डालती हैं।" "मैं समझा नहीं।" "चालाक स्त्रियां गर्भवती होने की बात प्रसारित करती हैं। वास्तव में होता कुछ भी नहीं, किन्तु नौ मास दस दिन तक वैसा ही प्रदर्शन करती हैं और उसके बाद उनके पुत्र ही उत्पन्न होता है ।" महामन्त्री ने कहा। मगधेश्वर तत्काल हंस पड़े और वे हंसते-हंसते ही बोले-"मन्त्रीश्वर ! मुझे प्रतीत होता है कि आप कोई स्वप्न की बात कर रहे हैं । सगर्भा स्त्री का पट कभी छुपा नहीं रह सकता।" "आपकी बात सही है। गर्भवती स्त्री का पेट कभी छुपा नहीं रहता। परन्तु चालाक स्त्री का पेट छुपा रह जाता है क्योंकि वह अपने पेट पर कुछ भी बांधकर उसे उभरा हुआ बना सकती है।" यह सुनकर मगधेश्वर आश्चर्य में रह गए। उन्होंने कहा- "आपकी बात ठीक है । श्रेणिक को अभी यहां बुलाना उचित नहीं । किन्तु कामरूप देश के वैद्य ने मुझे स्पष्ट कहा है कि देवी अब गर्भ धारण नहीं कर सकती । यह तो केवल महादेवी के आत्मतोष के लिए मेरे प्रोत्साहन से औषधि प्रयोग कर रहे हैं।" "यह ठीक है । कोई भी सच्चा वैद्य झूठा आश्वासन नहीं दे सकता। मुझे
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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