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________________ २५८ अलबेली आम्रपाली स्थिर, गंभीर और भव्य आकृति वाले महामंत्री खंड में प्रविष्ट हुए। उन्होंने सभी व्यापारियों से कुशल-क्षेम पूछा । व्यापारियों ने उनका मानभरा अभिवादन किया। और सभी अपने-अपने स्थान पर बैठ गये। कुछ क्षणों पश्चात् महामंत्री की आज्ञा लेकर कोषाध्यक्ष ने सभा को संबोधित कर कहा-"महानुभावो ! आप सबको यहां एक विशेष प्रयोजन से आमंत्रित किया है । आप सब जानते हैं कि राजेश्वर महाराजाधिराज सिंधु-सौवीर देश में विराजते हैं। वे लगभग दो मास बाद यहां पधारेंगे । वहां से उन्होंने एक महत्त्वपूर्ण खरीदी के लिए यहां आदेश भेजा है। उनकी आज्ञा के अनुसार राज्य-कोष में सौ 'वाह' सोना खरीदना है। स्वर्ण शुद्ध होना चाहिए और इतना स्वर्ण तीन महीने के भीतर-भीतर राजभवन में पहुंचाना होगा। जिस महानुभाव की 'दर' न्यून होगी, उसी को यह सौदा दिया जाएगा।" स्वर्ण का इतना बड़ा सौदा ? सभी व्यापारी स्तब्ध रह गये। सभी ने मन ही मन सोचा, इतना स्वर्ण तो बाहर से ही लाना पड़ेगा और अभी वर्षाकाल है। तीन महीनों के भीतर इतना स्वर्ण कैसे पहुंचाया जाए ? एक व्यापारी ने खड़े होकर कहा-"मंत्रीश्वर ! इतना स्वर्ण एकत्रित किया जा सकता है, परन्तु अभी वर्षाकाल है इसलिए, समय की अवधि अधिक होगी। आप समय की अवधि को बढ़ाएं।" बीच में ही महामंत्री ने कहा-“वर्षाकाल का मुझे ध्यान है और इसीलिए तीन महीनों का समय दिया है। परन्तु यदि कोई व्यापारी दो महीने के भीतर, इतना स्वर्ण पहुंचा देगा, उसे प्रति तोला दस कपर्दक अधिक दिए जाएंगे।" व्यापारी परस्पर चर्चा करने लगे। स्वर्ण का चालू भाव नौ रुपये और नियासी कपर्दक प्रति तोला था। परन्तु इतने स्वर्ण की खरीदी में भाव बढ़ने की आशंका तो थी ही। ___ यह सारा गणित कर पांच बड़े व्यापारियों ने मिलकर सौदा लेने का निर्णय किया और दस रुपया अस्सी कपर्दक प्रति तोला भाव घोषित किया। महामंत्री ने अन्य व्यापारियों की ओर देखा 'सौदे की बोली लग रही थी। और अंतिम भाव एक तोले का दस रुपया और पचास कपर्दक घोषित हुआ। धनदत्त सेठ का मुनीम जयकीर्ति शांत बैठा था । वह खड़ा होकर बोला"मंत्रीश्वर ! मैं धनदत्त सेठ का मुनीम हूं और उनका प्रतिनिधि बनकर आया हूं । मेरे सेठ दो महीने में 'सौ वाह' स्वर्ण उपलब्ध करा देंगे और प्रति तोले स्वर्ण का हमारा मूल्य होगा दस रुपया।" १. एक 'वाह' पच्चीस मन और चौबीस सेर का होता है। अस्सी तोले का एक सेर और चालीस सेर का एक मन।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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