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________________ अलबेली आम्रपाली २५३ सम्बन्धित कोई बात नहीं लिखी, परन्तु स्वयं एक स्थान पर स्थिर हो जाने के पश्चात् प्रियतमा को बुला लेगा, यह बात बार-बार लिखी। साथ ही साथ प्रेममिलन और महाबिंब वीणा की बात भी लिखी । दूसरे दिन प्रातः वह दामोदर के साथ सिप्रा के तट पर गया। स्नान आदि से शीघ्र ही निवृत्त होकर पांथशाला में आया, सारा सामान एकत्रित कर दामोदर को संदेशवाहक को बुलाने भेजा । बिबिसार का हृदय आज आनन्द से उछल रहा था। जिस तरुणी को देखने के लिए वह अपनी परिस्थिति को गौण कर तप तप रहा था, उसी तरुणी के भवन में रहने का सुयोग उसे सहज प्राप्त हुआ कितना आनन्द ! fafaसार को प्रियतमा आम्रपाली का स्मरण होता रहता । वह अपनेआपको भाग्यशाली भी मानता था कि पूर्व भारत का सर्वश्रेष्ठ नारी रत्न प्राप्त हुआ है। इतना होने पर भी, नंदा को देखने के पश्चात् उसके मन में अचानक बदलाव आ गया था । पुरुष जाति में रहे हुए स्वाभाविक दोष से कौन मुक्त रह सकता है ? पुरुष की आंखों में विष है या अमृत, यह आज तक अव्यक्त रहा है । परन्तु इतना तो स्पष्ट ही है कि रूप और यौवन की मदभरी प्रतिभा को देखने के पश्चात् मनुष्य का मनमोर नाच उठता है और यह नृत्य मन को या तो मस्त बना डालता है या पागल ! पुरुष की पलकों में जो चित्र पहले अंकित होता है वह कुम्हलाए हुए फूल पंखुड़ी की भांति बिखर जाता है और उसके स्थान पर दूसरा ही चित्र अंकित हो जाता है । नंदा को देखने के पश्चात् बिंबिसार को यही अनुभव होने लगा कि संसार में इससे अधिक रूपवती और कोई नारी नहीं है । वाह रे पामर पुरुष ! वास्तव में पुरुष अत्यन्त अस्थिर और पामर होता है। पुरुष अपने दोषों को ढकने के लिए नारी को ही चंचल, अस्थिर और अल्प बुद्धि वाली बताता है । इतना कहते हुए भयंकर आरोपों के मध्य नारी को रखते हुए भी पुरुष की पामरता छिप नहीं सकती और नारी का समर्पण भी कभी मुरझा नहीं सकता । नारी समर्पण की प्रतिमूर्ति है । इस समर्पण में विनिमय नहीं होता। वह अपने प्रिय के प्रतितन-मन और भावनाओं का सम्पूर्ण समर्पण करती है और बदले में केवल चाहती है प्रिय का सन्तोष । वाह रे महान् नारी ! दो घटिका के पश्चात् दामोदर संदेशवाहक को लेकर आ गया । बिंबिसार ने उसके हाथ में पत्रवाली नलिका देकर कल तक वैशाली जाने के लिए कहा । संदेशवाहक बहुत प्रसन्न हुआ ।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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