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________________ २४६ अलबेली आम्रपाली बिंबिसार ने आचार्य से कहा-'आप मुझे दें।" आर्य सुप्रभ ने वीणा बिबिसार को दी। उन्होंने उसका सूक्ष्म निरीक्षण कर, उसमें जो एक पतला धागा समा गया था, उसको निकाला और वीणा को स्वस्थ कर आर्य सुप्रभ को सौंपते हुए कहा- 'अब ठीक है।" आचार्य ने कहा--'मेरी एक प्रार्थना स्वीकार करेंगे ?" । बिंबिसार ने सुप्रभ की ओर प्रसन्न दृष्टि से देखा । आचार्य सुप्रभ बोले-"आपकी दृष्टि, आपकी अंगुलियां और आपकी आंखें कलाकार होने की साक्षी देती हैं । आप हमारे पर कृपा कर वीणा हाथ में लें।" बिंबिसार अपनी परिस्थिति भूल-से गए। वे महीनों से वीणा-वादन न कर पाए थे। वीणावादन की भावना उभरी। उन्होंने आचार्य सुप्रभ से वीणा ली और कहा-"आचार्य ! कल्याण की आराधना अभी अधूरी रही है, उसे ही पूरा करूं।" "जैसा आप चाहें।" कहकर आचार्य सुप्रभ अपने आसन पर बैठ गए। बिबिसार ने वीणा को मस्तक से लगा नमस्कार किया और स्वर तरंगित किए। कल्याण की आराधना प्रारंभ हुई। सारे वाद्यकार प्रसन्नचित्त होकर घटिका पर्यन्त परदेसी अतिथि की ओर देखते रहे । फिर वे वीणा-वादन का साथ देने लगे। ___ कामप्रभा मुग्ध नेत्रों से बिंबिसार की ओर देखती रही। उसके मन में अनेक कल्पनाएं आ रही थीं। एक गांव के वणिक-पुत्र ने कला की ऐसी साधना कब की होगी? इसने यह कला कहां और किससे सीखी है ? उज्जयिनी के सर्वश्रेष्ठ वीणावादक आर्य सुप्रभ के वीणा-वादन में दोष निकालने वाले इस परदेसी की कला का कहना ही क्या? यह कितना महान् है ? जो व्यक्ति प्रात: अपने जीवन को खतरे में डालकर वृद्धा के प्राण बचाने में तत्पर हुआ, वही व्यक्ति अभी वीणावादन कर रहा है। कौन है यह ? __ कल्याणराग पूर्ण चन्द्रमा की भांति खिल रहा था। मृदंगवादक आज स्वयं को धन्य मान रहा था । और सुप्रभ ने जान लिया था कि कल्याणराग का इतना सूक्ष्म स्वरूप अन्यत्र सुनने को कभी नहीं मिला। राग उत्तरोत्तर सूक्ष्म बनता जा रहा था। तीन घटिकाएं बीत गईं. इतना समय कब कैसे बीता किसी को भान ही नहीं रहा। देवी कामप्रभा का हृदय नृत्य करने के लिए बार-बार छटपटा रहा था। उसे यह स्पष्ट प्रतीत हो रहा था कि उसने अनेक वीणावादकों को सुना है, परन्तु ऐसी स्वरमाधुरी को तरंगित करनेवाला कलाकार आज तक उसने नहीं देखा। यह
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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