SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अलबेली आम्रपाली २३७ बिबिसार ने शिवालय की एक छोटी धर्मशाला में वस्त्र बदले, फिर दामोदर से कहा - " दामूं ! मैं यहां बैठा हूं, तू नहाकर जल्दी आ ।" "महाराज ! मुझे तो वर्षा ने पूरा नहला दिया है ।" "पगले ! छत्र के नीचे खड़े रहकर कोई नहाता है क्या ? जा। गंगा के किनारे आकर बिना स्नान किए लौट जाना, मन्दभाग्य कहलाता है । जा, मैं यहीं बैठा हूं।" fafaसार के भीगे वस्त्र लेकर वह वहां से चला गया । वर्षा का वेग धीमा था, परन्तु आकाश में बादलों का उमड़-घुमड़ पूर्ववत् था । बिंबिसार ने आकाश की ओर देखा । और प्रियतमा आम्रपाली की स्मृति मेघमंडित बादलों के बीच मनोभाव में उमड़ पड़ी। संदेशवाहक पहुंच गया होगा । पत्र पढ़कर प्रियतमा आनन्दमग्न हो गयी होगी. अब तो उसका संदेश भी आ गया होगा । ओह, वर्षा के सुनहले अंधकार में देवी आम्रपाली के नयन बिजली की भांति तेजस्वी दीख पड़ते थे कितना माधुर्य कितना प्रेम कितनी भावना। देवी आम्रपाली की कल्पना में बिंबिसार स्थान और समय भूल गए । दामोदर ने आकर कहा - "महाराज ! पधारें ।" उसी समय बिबिसार को पता लगा कि वे सिप्रा के किनारे पर स्थित एक धर्मशाला में हैं और अभी प्रियतमा की स्मृति में भान भूले हुए हैं । दोनों पांथशाल की ओर चले । दो दिन पूर्व जब बिंबिसार भव्य बाजार को देखने गए थे, तब उन्हें पता चला था कि वहां एक भव्य पार्श्वनाथ का जिनालय है । उसमें स्थित प्रतिमा चमत्कारी और भव्य है । प्रतिमा के मस्तक पर यदाकदा स्वतः पुष्पवृष्टि होती है । वे उस मन्दिर की टोह में निकले। उन्हें पता लगा कि अमुक स्थान पर चितामणि पार्श्वनाथ का प्रख्यात मन्दिर है । 'उस स्थान पर गए और एक ओर खड़े हो गए । इतने में ही उनके कानों में घंटानाद की ध्वनि टकराई... प्रासाद के मुख्य द्वार से एक सोलह वर्ष की सुन्दरी बाहर निकल रही थी । उसके पीछे एक सखी हाथ में खाली थाल लेकर बतियाती हुई आ रही थी । ffer अवाक् निस्पंद और अचल होकर अनिन्द्य तरुणी की ओर देख रहे थे । वह तरुणी निकट आयी. उसकी दृष्टि भी बिंबिसार की ओर गई । बिबिसार के नयन स्वतः नीचे हो गए । सुन्दरी पास से आगे बढ़ गयी ।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy