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________________ २२६ अलबेली आम्रपाली राहुल आश्रम के द्वार पर आया। उसने कंटीले बाड़ से बने द्वार को हटाया। दोनों अन्दर प्रविष्ट हुए। उपवन के मध्य में चालीस-पचास कुटीर थे। उपवन में यत्र-तत्र कुछ पुरुष विविध कार्यों में संलग्न थे। अश्वारोही नौजवान को आते देखकर एक तरुण पुरुष सामने आया। वह कुछ पूछे उससे पहले ही राहुल ने कहा-"ये आनर्त देश के संगीतकार हैं। वैद्यजी के दर्शन करने आए हैं। कल ही पता चला कि वैद्यबापा आ गए हैं, तो उनसे मिलने यहां आए हैं।" तरुण शिष्य ने कादंबिनी के तेजस्वी और सुकुमार वदन को देखा और स्वागत करते हुए बोला-"पधारो । गुरुदेव अभी पूजा-पाठ में बैठे हैं। कुछ ही समय में वे निवृत्त हो जाएंगे । आप मेरे साथ आएं।" कादंबिनी अश्व से नीचे उतरी और अश्व की लगाम राहुल को थमाती हुई बोली-"राहुल ! तू यहीं रहा। मैं गुरुदेव से मिलकर आती हूं।" राहुल ने मस्तक नमाया। कादंबिनी तरुण शिष्य के पीछे-पीछे चल पड़ी। दस-बारह कुटीर के पश्चात् वह तरुण शिष्य कादंबिनी को एक विशाल और सुन्दर-स्वच्छ कुटीर में ले गया। वहां जाकर वह बोला-"श्रीमन् ! आप यहां आसन पर विराजें। गुरुदेव यहीं पधारेंगे।" कादंबिनी एक काष्ठासन पर बैठ गई । तरुण शिष्य चला गया। ४७. श्यामा का मन पुरुषवेशधारिणी कादंबिनी नीरव, स्वच्छ और सुन्दर कुटीर में वैद्यराज गोपालस्वामी की प्रतीक्षा करती हुई एक काष्ठासन पर बैठ गई। सूर्योदय हो चुका था। कादंबिनी गोपालस्वामी से बातचीत करने की मन-ही-मन योजना बना रही थी। उसने सोचा, कैसे उनसे बात करूं? वह ठीक है कि वैद्य और माता के समक्ष कोई भी बात गुप्त नहीं रखनी चाहिए । इसलिए मुझे भी निःसंकोच रूप से अपनी सारी बात वैद्यजी के समक्ष रख देनी चाहिए। विचारों में एक घटिका बीत गई। परन्तु उसे समय का भान नहीं रहा। मनुष्य जब विचारों की उधेड़बुन में लगता है तब समय अल्प होता चला जाता विचार एक ऐसा तन्त्र है जो मनुष्य को प्रसन्न और आनन्दित भी बनाता है तो उसे पीड़ित, व्यथित और पागल भी बना डालता है। अचानक उसके कानों में खड़ाऊं के पदचाप की ध्वनि पड़ी। उसने चौंककर
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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