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________________ २१८ अलबेली आम्रपाली लगभग चार घटिका के बाद कादंबिनी ने अपना जूडा बांधा और किसी को कल्पना भी न हो, इस प्रकार उस पर एक कपडा लपेटा। __ वहां दर्पण नहीं था, परन्तु उसको यह विश्वास था कि कोई भी उसको स्त्री रूप में नहीं पहचान पायेगा। मन में कोई संशय नहीं था। इसलिए कुटीर का द्वार खोला। भूख लग गई थी। दस कोश का प्रवास किया था। साथी मृत्यु का कवल बन गया था। प्रातःकाल कुछ भी खाया नहीं था। दूध भी नहीं पीया था। और शरीर में व्याप्त विष भूख को अधिक उग्र कर रहा था। ____ इतने में ही श्यामा आकर बोली – “महाराज ! आपको स्नान करने में बहुत समय लगा। भोजन तैयार है । यहां लाऊं या आप वहां आएंगे?" "यहीं ले आ।" कुछ ही समय में श्यामा भोजन की थाली लेकर आ गई। सूर्य अस्ताचल की ओर चला गया था। सुरनंद के शव को पांथशाला में छोड़ा था। सांझ होते-होते वहां के वृद्ध संचालक के मन में गहरी चिंता होने लगी। वैद्य को बुलाने के लिए गया हुआ नवजवान अभी तक नहीं लौटा । क्या मार्ग में किसी ने उसको लूट लिया ? क्या वह मार्ग भूल कर अन्यत्र चला गया ? उस बेचारे का क्या हुआ होगा? उसने अपने गांव के चार-छह व्यक्तियो को एकत्रित किया। सबने सुरनंद की निर्जीव काया को देखकर कहा-"अब इसमें कुछ नहीं है। बेचारा किसी भयंकर विषधर का भोग बना है।" सभी मिलकर शव को श्मशान ले गए और उसका अग्नि-संस्कार कर बोले- 'बेचारा परदेशी मार्ग में ही मर गया।" सुरनंद का अश्व तथा सारा सामान एक दिन प्रतीक्षा करने के पश्चात् किसी सुपात्र ब्राह्मण को दान में देना निश्चय किया गया। इधर वैशाली में चरनायक सुनंद ने विषकन्या की खोज में रात-दिन एक कर डाला। किन्तु कहीं भी उसका अता-पता नहीं लगा। गोपालस्वामी भी वर्षा के प्रारंभ होने के पूर्व ही चंपा नगरी की ओर प्रस्थान करने की तैयारी करने लगे। ____ गणनायक सिंह ने गोपालस्वामी का आभार माना और उन्हें पुष्कल द्रव्य से पुरस्कृत किया। ___ दूसरी ओर, कादंबिनी के वृद्ध नियामक और लक्ष्मी परिचारिका ने नगररक्षक के चरणों में लुठकर स्वयं को सकुशल राजगृह पहुंचाने के लिए प्रबंध करने
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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