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________________ अलबेली आम्रपाली १३ कितना ही बलिदान क्यों न करना पड़े, मैं अपने सर्वस्व को होम कर भी आपको प्रसन्न करूंगी। आप मुझे।" "पाली ! मैं तेरे से कुछ भी गुप्त रखना नहीं चाहता। कभी मैंने कुछ भी नहीं छुपाया, केवल इस बात से मैंने तुझे अन्धकार में रखा। मैं तुझे भ्रम में डालने या यथार्थ को मोड़ने की बात नहीं कर रहा हूं। गणसभा का एक भयंकर नियम है।" "भयंकर नियम?" "हां, वैशाली गणतन्त्र में कोई रूपवती' असामान्य रूपवती कन्या हो उसकी वैशाली गणतन्त्र की एकता की सुरक्षा के लिए जनपदकल्याणी होना जरूरी है।" "क्या ?.. "प्रश्नभरी दृष्टि से आम्रपाली ने पिता की ओर देखा। महानाम ने शान्त स्वर में कहा- 'तेरा रूप मात्र वैशाली के लिए नहीं, किन्तु समस्त भारत के लिए बेजोड़ है । वैशाली गणतन्त्र तुझे जनपदकल्याणी बनने का आदेश देता है।" "जनपद कल्याणी ! दूसरे शब्दों में कहें तो नगर-नारी ! क्या यही तात्पर्य है"-आम्रपाली ने पूछा। ___ महानाम अपनी दोनों हथेलियों से मुंह ढककर बैठा रहा। कुछ नहीं बोला। कुछ क्षणों तक पिता-पुत्री दोनों मौन रहे । फिर आम्रपाली बोली-"किन्तु मुझे नारी के मंगलमय आदर्श का त्याग क्यों करना चाहिए? मुझे जो रूप प्राप्त है, वह वैशाली गणतन्त्र की सम्पदा नहीं है। उसका इस पर स्वामित्व नहीं है, यह तो प्रकृति का वरदान है। ईश्वर प्रदत्त वरदान का अपमान करने का गणतन्त्र को क्या अधिकार है ?" "गणतन्त्र के कल्याण के लिए...।" "कल्याण के लिए। कल्याण के लिए ? पिताश्री ! एक निर्दोष कन्या अपने यौवन के देहलीज पर प्रथम चरण रखती है और वह अपने आदर्श के अनुसार जीवन यापन करना चाहे, इसमें गणतन्त्र के प्रासाद की कौन-सी ईंट खिसक पड़ती है ?" "पुत्री ! अभी तुझे सत्य ज्ञात नहीं है। अपने इस महान् गणतन्त्र की एकता बनाए रखने के लिए अष्टकुल के नायकों ने इस नियम को गढ़ा है। आज समस्त पूर्व भारत में तेरे रूप की प्रशंसा सौम्य गंध के पुष्प की भांति प्रसरित हो चुकी है। 'वैशाली के अनेक लिच्छवी युवक तु पत्नी बनाने की तीव्र लालसा से तरंगित हो रहे हैं। पिछले दो वर्षों से अपने नीलपद्म प्रासाद के इर्द-गिर्द अनेक युवक चक्कर काटते रहे हैं । तू अपना पूरा मन नृत्य-संगीत की साधना में लगा रही है। इसलिए तुझे इस बात की खबर नहीं है । तुझे प्राप्त करने के लिए
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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