SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अलबेली आम्रपाली २०५ सिंह सेनापति को यथार्थ नहीं लग रही थी। फिर भी वे अपरान्ह में आम्रपाली से मिलने के लिए उसके भवन में गए। आम्रपाली को देखते ही उनका मन दर्द से भर गया। उन्होंने देखा कि आम्रपाली के चेहरे पर मानो समग्र विश्व की वेदना एकीभूत हो गई हो। चिन्ता से रूप और तेज निःसत्व हो जाता है। सिंहनायक ने पूछा-"पुत्रि ! कुछ अस्वस्थता है ?" किंकर्तव्यविमूढ़-सी वह बोली-"बापू ! क्षमा करें. 'मन अस्वस्थ था, इसलिए मैं आपके प्रति मेरे कर्तव्य को भी भूल गयी। विराजें...।" "मन की अस्वस्थता क्यों ? युवराज के कोई समाचार मिले?" कह कर गणनायक एक आसन पर बैठे। "कोई समाचार नहीं मिला है। इसलिए अतिवेदना हो रही है।" कहकर आम्रपाली एक आसन पर बैठ गयी। "तब मैं ही तुझे उनके समाचार सुना दूं।''युवराज वैशाली की सीमा को पार कर आगे चले गए हैं। यहां के चर विभाग को ये समाचार कल रात्रि में ही प्राप्त हुए हैं।" "ओह, यह सुनकर मेरा मन स्वस्थ हुआ है । वे कुशल तो हैं न ?" "हां, पुत्रि ! युवराज अपने साथी के साथ कुशल हैं । तू निश्चिन्त रह । मुझे प्रतीत होता है कि वे कहीं स्थिर होने के पश्चात् तुझे सन्देश भेजेंगे।" "महाराज ! आपकी बात सुनकर मन कुछ स्वस्थ हुआ । युवराज को यहां से अचानक जाना पड़ा है। प्रवास में उपयोगी सामग्री भी उनके पास नहीं है। इससे मेरा मन भारी वेदना अनुभव कर रहा था । अब आपके कथन से मेरा मन कुछ शान्त हुआ है।" आम्रपाली का चेहरा प्रफुल्लित हो गया था। सिंहनायक ने कहा- "पुत्रि ! तूने कुमार शीलभद्र की मृत्यु के विषय में कुछ सुना है ?" "हां, यह बात सुनकर मेरे हृदय पर बहुत आघात लगा। वे युवकों के कुशल नेता थे। वे वास्तव में वैशाली गणतन्त्र के एक जागृत नवजवान थे।" आम्रपाली ने शोक व्यक्त करते हुए कहा । "पाली ! इस प्रकार हमारे चार व्यक्ति मृत्यु प्राप्त कर चुके हैं। चम्पा नगरी के विषवैद्य गोपालस्वामी ने इस मृत्यु का रहस्य बताया है।" "अच्छा ।" "किसी विषकन्या के स्पर्श से चारों की मृत्यु हुई है, ऐसी संभावना उन्होंने व्यक्त की है।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy