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________________ २०० अलबेली आम्रपाली फलित होता है कि मरने वाले के साथ कोई न कोई दूसरा व्यक्ति अवश्य ही होना चाहिए। और मेरा निश्चय है कि वह दूसरा व्यक्ति विषकन्या ही होना चाहिए।" "विषकन्या ?" "हां, शास्त्र के अनुसार दो प्रकार की विषकन्याओं का निर्माण किया जा सकता है । एक की योनि में विष होता है। दूसरी के मुख में या गाढ़ स्पर्श में विष होता है । प्रथम प्रकार की विषकन्याओं का निर्माण अनेक राज्यों में होता है। किन्तु दूसरे प्रकार की विषकन्या के निर्माण का प्रयत्न किसी ने किया हो, ऐसा मेरे सुनने में नहीं आया। फिर भी चारों व्यक्तियों के मरने की परीक्षा करने पर मुझे ऐसा प्रतीत होता है, किसी ने स्पर्शमात्र से प्राण-हरण करने वाली अति भयंकर विषकन्या का निर्माण किया हो।" ___ सभी गहरे चिन्तन में लग गए। ऐसी विषकन्या वैशाली में कैसे आई ? कहां से आई ? कौन है ? आदि प्रश्न सभी के मन में उभरने लगे। ___ सिंहनायक ने पूछा--"वैद्य राज ! स्पर्श से मार देने वाली विषकन्या के विषय में तो हमने कभी सुना ही नहीं।" "मैंने केवल शास्त्रों में पढ़ा है, परन्तु किसी ने ऐसी विषकन्या का निर्माण किया हो, ऐसा नही सुना है। क्योंकि ऐसी विषकन्या का निर्माण अत्यन्त दुष्कर होता है । पांच-दस कन्याओं की मृत्यु होने के पश्चात् ही एकाध कन्या विषकन्या बन सकती है।" गोपालस्वामी ने कहा । चरनायक ने पूछा-"वैद्यराज ! क्या आप यह निश्चयपूर्वक कहते हैं कि यह मृत्यु विषकन्या से ही हुई है ?" "हां, क्योंकि मरने वाले के मुख से जो फेन निकले थे, उनका रासायनिक विश्लेषण करने पर यही प्रतीत हुआ कि किसी भी भयंकर से भयंकर जहरीले प्राणी के विष से भी वह विष तीव्र, भयंकर और सद्योघाती है। मैंने कुमार शीलभद्र के शव का अनेक प्रकार से परीक्षण किया था। उनके अधरों पर ही विष का प्रभाव मुझे प्रतीत हुआ। उनके अधर सूख गए थे। अन्यत्र कहीं विकृति नहीं थी। चुंबन के बिना ऐसा होना संभव नहीं है । और पुरुष सदा स्त्री के प्रति आकृष्ट होता रहा है। इसलिए वैशाली में अभी-अभी जो चार-चार व्यक्तियों की मृत्यु हुई है, उसका मूलकारण विषकन्या ही होनी चाहिए, ऐसा मेरा निश्चय है।" वैद्यराजजी ने स्पष्टता से कहा। चरनायक ने पुनः पूछा-"विषकन्या को कैसे पहचाना जाए ?" "यही अत्यन्त कठिन है। विषकन्या अन्य स्त्रियों जैसी ही दिखलाई देती है। उसके नयन और बदन में कोई विशेषता नहीं होती। उसे पहचाने का एक ही उपाय है।" कहकर गोपालस्वामी मौन हो गए । सभी उनकी ओर देखने लगे।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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