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________________ १९८ अलबेली आम्रपाली डालना। उसने यह सब कुछ वैशाली के गौरव की सुरक्षा के लिए किया था। बिंबिसार और आम्रपाली नैशभ्रमण के लिए इस ओर आए हैं, यह जानकर उसने शताधिक पुरुषों को यहां भेजा था। यहां उन्हें कोई नहीं मिला । मध्याह्न के पश्चात् उसको ये समाचार मिल गए थे कि बिंबिसार अपने साथी के साथ यहां से निकल गए हैं। इससे वह बहुत निराश हुआ। संध्या तक वह अपने भवन में ही था। फिर वह भ्रमण करने के बहाने अश्वारूढ़ होकर निकल गया था। __ चरनायक को यह भी ज्ञात हुआ कि शीलभद्र रात्रि के प्रथम प्रहर के पश्चात् अपने किसी नवयुवक साथी के साथ नगरी के दक्षिण द्वार से बाहर निकला था। दोनों अश्वों पर आरूढ़ थे। द्वार-रक्षक ने दोनों को देखा । परन्तु उसने शीलभद्र के साथी को पहचाना नहीं। वह नवजवान साथी कौन होगा ? चरनायक ने यह जानने का भी पूरा प्रयत्न किया कि साथी का अश्व कैसा था? उसने द्वारपाल से पूछा । परन्तु कुछ भी अतापता नहीं लगा। चरनायक ने इस गुत्थी को सुलझाने के लिए और भी बहुविध प्रयोग किए, पर सब व्यर्थ । वह गुत्थी को सुलझाते-सुलझाते और अधिक उलझता गया। सिंह सेनापति भी इस मृत्यु से बहुत चिन्तित हुए। उन्होंने सोचा, बिना किसी चिह्न के यह मृत्यु कैसे घटित होती है ? न तो विषाक्त प्राणी का दंश कहीं नजर आता है और न विष दिए जाने की कोई बात दीखती है ? फिर मृत्यु होती कैसे है ? चारों मौतें समान हुई हैं। मारने वाला कौन है-इसका कुछ भी पता नहीं लगता । यदि यह कोई षड्यंत्र है तो वैशाली राज्य का दुर्भाग्य है 'इससे वंशाली की शक्ति खंड-खंड हो गई है 'वैशाली की रीढ़ टूट चुकी है. वैशाली की स्वायत्तता खतरे में पड़ गई है। विषविद्या विशारद गोपालस्वामी अपने स्थान पर आए और अपने शिष्य को कुछेक वस्तुएं लाने नगरी में भेजा। फिर वे स्नान आदि से निवृत्ति होकर खोज में लग गए। रात्रि का दूसरा प्रहर पूरा हो रहा था । गोपालस्वामी अपने खंड से बाहर निकले । वे प्रसन्न दीख रहे थे। उन्होंने आते ही बाहर बैठे शिष्यों से पूछा--"कोई आया था ?" "कुछ समय पूर्व ही गणनायक आए थे।" "क्या कुछ कहा था ?" "हां, वे आपका निर्णय जानने के लिए अत्यन्त आतुर हैं।" "उनको यह समाचार भेज दो कि मृत्यु का रहस्य ज्ञात हुआ है। कल मैं .. उनसे मिलूंगा, अभी नहीं।" "जी।" कहकर शिष्य चला गया।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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