SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 196
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अलबेली आम्रपाली १८७ है । यह विरह हमारे लिए ऐसा तप बन जाएगा कि आगे का मिलन स्थायी हो जाएगा। इस समय तो मैं..." ___आम्रपाली सजल नयनों से प्रश्नभरी दृष्टि से प्रियतम की ओर देख लगी। बिबिसार ने कहा- "यह बंधन नरक जैसा है। मैं लौटकर तुझे इस बंधन . से छुड़ाऊंगा · 'मैं तुझे अपने साथ ले जाऊंगा।" ____ आम्रपाली कुछ नहीं बोल सकी। वह नीचे झुकी। उसने दोनों हाथों से स्वामी के चरण स्पर्श किए। ___ उस समय आम्रपाली की अविरल अश्रुधारा से बिंबिसार के चरण गीले हो रहे थे। बिंबिसार अभी तक अपने हृदय को थामे हुए था. अब उसका हृदय पिघल गया। उसके नयन भी सजल हो गए। दो आंसू कपोल पर लुढ़क गए। उसने आम्रपाली को उठाया, प्रेमभरा चुंबन ले, बिना कुछ शब्द कहे, मन्दिर के गर्भगृह में चला गया। आम्रपाली दो क्षण स्थिर खड़ी रही। उसके चेहरे को देखकर लग रहा था कि उसका सर्वस्व लुट गया है। आम्रपाली ने उत्तरीय से आंसू पोंछे और वह लम्बा निःश्वास छोड़कर उसी गुप्तद्वार से भवन की ओर चली गयी। ___यक्ष मन्दिर के गर्भगृह से बिंबिसार और धनंजय दोनों बाहर के मंडप में आए। और वे माध्विका के आने की प्रतीक्षा करने लगे। पिउ को विदाई दे आम्रपाली दो घटिका के पश्चात् भवन में पहुंची। गुप्तमार्ग वाले खंड को खोलकर जब आम्रपाली बाहर निकली तब उसने देखा कि भवन में किसी प्रकार का कलरव नहीं है । सभी लोग बिखर गए हैं... अचानक यह कैसे हो गया ? ___ इस प्रकार सोचती हुई आम्रपाली सोपानश्रेणी चढ़ने लगी ''वहां प्रतीक्षारत माध्विका सामने आयी और नमन कर बोली- 'देवि ! क्या हुआ?" : मेरा कार्य पूरा हो गया है. 'तेरा कार्य शेष है'राघव अश्व लेकर तो गया ही होगा?" "हां"।" "सभी लिच्छवी लौट गए हैं ?" "हां, देवि ! गणनायक स्वयं पधारे थे। उनके आदेश से ही सारे लिच्छवी युवक बिखरे थे । मैंने भी एक असत्य बात प्रसारित की थी।" "असत्य बात ?"
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy