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________________ अलबेली आम्रपाली १७६ पर यदि रागिनी को चढ़ाया जाएगा तब आम्रपाली अपनी सगर्भावस्था का भान भूलकर नृत्य करने के लिए खड़ी हो जाएगी। इस भय से वे वीणा पर केवल दो ग्राम का ही स्पर्श कर रहे थे। ___इधर जीवन की यह सौरभ महक रही थी और उधर लिच्छवी युवक शीलभद्र के नेतृत्व में एकत्रित होकर चिनगारियां उछाल रहे थे। वहां यह विचार हो रहा था कि बिंबिसार को कैसे खत्म किया जाए। कोई कहता किसी बहाने बिबिसार को भवन से बाहर बुलाकर उसके मस्तक को धड़ से अलग कर दिया जाए। ये विविध विचार सुनकर शीलभद्र ने कहा-"मित्रो ! याद रखो, लिच्छवी युवक सदा आमने-सामने होकर ही दो हाथ दिखाते हैं। इसलिए कपट से बिंबिसार को मारना हमारे लिए शोभास्पद नहीं है।" "कुमारश्री ! आप ही हमारे मार्गदर्शक हैं । आप ही हमें उपाय बताएं।" एक लिच्छवी युवक ने कहा। __ शीलभद्र बोला-'आज सोमवार है । शुक्रवार के प्रातःकाल दो हजार व्यक्तियों को सप्तभूमि प्रासाद में अचानक घुसकर बिंबिसार को ललकारना चाहिए।" सबको यह उपाय उचित लगा। शीलभद्र ने सारी योजना अपने साथियों को समझा दी। सभा विसर्जित हुई। इधर सप्तभूमि प्रासाद में चंद्रनंदिनी रागिनी अपने पूर्ण यौवन में महाबिंब वीणा पर थिरक रही थी। आम्रपाली अत्यन्त प्रसन्न थी। राग आत्मा की प्रेरणा है। राग का असर मन पर हुए बिना नहीं रहता। आम्रपाली उस समय अलबेली रानी के समान लग रही थी। उसके नयनों में मस्ती थी । वदन पर उल्लास था। अपने को महान् प्रियतम मिले हैं, यह गर्व उसे झकझोर रहा था। परन्तु वह नहीं जानती थी कि मोहपीड़ित कुमार शीलभद्र शुक्रवार के प्रातःकाल सप्तभूमि प्रासाद पर आक्रमण कर उसके प्रियतम से रक्त से सारे प्रासाद को रंग कर अपनी आग को ठंडा करेगा। बिबिसार को भी इसकी कल्पना नहीं थी। बिंबिसार अपनी प्रिया के नयनों की मस्ती देखकर अति प्रसन्न सोरहा था। बिबिसार ने चंद्रनंदिनी राग को सम्पन्न किया। और उसी समय आचार्य इलावर्धन ने मृदंग को एक ओर रखकर बिंबिसार के चरणों में झुककर कहा--"महाराज ! आपका साथ दे सकू, ऐसी स्थिति में में
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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