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________________ अलबेली आम्रपाली १६१ सबसे आश्चर्यकारी बात तो यह थी कि यक्ष के उपवन में वीरसेन के साथ कोई दूसरा आया हो, ऐसा चिह्न भी नहीं मिला। मृत्यु की रात्रि के अन्तिम प्रहर में अनेक भवन के दास-दासियों ने उन्हें देखा था। वे एक अश्व पर बैठकर बाहर निकले थे। किसी को कोई सूचना नहीं दी थी। अपनी एक अतिप्रिय पत्नी को उन्होंने इतना-सा कहा था-"आज सम्भव है कि मैं विलम्ब से आऊ । एक मित्र के आवास में संगीत की बैठक है। उसमें मुझे जाना है।" इसके अतिरिक्त और कोई बात ज्ञात नहीं हो सकी थी। वीरसेन के जितने मित्र थे, उनसे ज्ञात हुआ कि संगीत की ऐसी कोई बैठक थी ही नहीं। ____ इस प्रकार सुनन्द मृत्यु की समस्या को सुलझा नहीं पाया। वह सिंह सेनापति के पास गया। वे बोले-"सुनन्द ! तीनों व्यक्तियों की मृत्यु का प्रकार समान है। तीनों की मृत्यु विष के प्रभाव से हुई है। तीनों की मृत्यु से हमारे राज्य की अपूरणीय क्षति हुई है।" "हां, महाराज !" "सम्भव है, वैशाली गणतन्त्र के शत्रु की यह चाल हो, षड्यन्त्र हो।" "परन्तु नगरी में किसी शत्रु के आगमन की बात चर-विभाग के पास नहीं पहुंची है।" सुनन्द ने कहा। सेनापति बोला-"मगध का महामन्त्री बहुत चालाक है । सम्भव है उसके गुप्तचर इस नगर में हों । चन्द्र प्रद्योत भी ऐसी हरकतें कर सकता है।" "मगध से कोई अनजान व्यक्ति यहां आए हों, ऐसा नहीं लगता । अभीअभी कादंबिनी यहां आई है। मैंने उसके यहां पूरी जांच-पड़ताल की है, पर मुझे कोई शंकास्पद व्यक्ति नहीं मिला?" चरनायक ने कहा। "कादंबिनी में इतना साहस नहीं हो सकता, यह स्पष्ट है, और वह मगध की नहीं, गांधार की है।" "आचार्य जयकीर्ति ..?" "मैं स्वयं उनसे मिला था। वे निर्दोष लगते हैं । अभी उनका पूरा परिचय प्राप्त नहीं हो सका है। मैं आज रात को पुनः उनसे मिलने जाऊंगा।" सिंह सेनापति ने कहा। सन्ध्या का समय। सप्तभौम प्रासाद दीपमालिकाओं से जगमगा उठा। रात्रि का प्रथम प्रहर पूरा हो, उससे पूर्व ही गणनायक का रथ सप्तभौम प्रासाद के वसन्तगृह के प्रांगण में आ पहुंचा। सिंह सेनापति के आगमन की बात सुनकर आम्रपाली के मन में भय उभर
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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