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________________ १५० अलबेली आम्रपाली कहा-"आम्रपाली सगर्भा है और उसका प्रियतम है एक वीणावादक जो अन्य राज्य का है। कितना सौभाग्यशाली है वह !" यह बात उसने सुनी और मन ही मन सोचा. हो न हो, वह वीणावादक ही मेरा मित्र बिबिसार होना चाहिए । सम्भव है देश-निष्कासन के कारण छद्मनाम से वे यहां जनपदकल्याणी के अतिथि बन कर रह रहे हों और आम्रपाली उनके प्रेम में । __वह येन-केन प्रकारेण सप्तभौम प्रासाद में पहुंचा और अपने प्रिय मित्र को उपवन के एक वृक्ष के नीचे देखा । बिंबिसार उस समय एक हरिण शावक के साथ क्रीड़ा कर रहे थे । वह शावक उछल-कूद कर मन बहला रहा था। ज्यों ही मित्र ने बिंबिसार को देखा, वह बोल उठा-"जय हो, महाराज !" बिबिसार भी उसे पहचान गये । वे बोले-"धनद..." फिर दोनों एकान्त में गए । विचारविमर्श किया और छद्मवेश का सारा इतिवृत्त सुनाते हुए मगया के लिए चलने का निश्चय कर दिया। ३३. राजकुमारी रजनीगंधा उसी दिन बिबिसार ने आम्रपाली की सहमति प्राप्त कर ली और फिर दोनों मित्र मालवीय वेश में आवश्यक सामग्री ले, दो अश्वों पर बैठ गया के लिए चल पडे । बिबिसार ने साथ में अपनी प्रिय वीणा और धनुष्य बाण ले लिया था। चार-पांच योजन चलने के पश्चात् धनद ने बिबिसार से कहा-"महाराज! हम वैशाली से बिना कुछ खाए ही चल पड़े थे। भूख भी असह्य हो रही है। घोडे भी थक गए होंगे । हम अब इस विशाल वृक्ष की सघन छाया में ठहरें और अल्पाहार कर, कुछ विश्राम कर फिर आगे बढ़ें। घोड़े भी कुछ पास में चर लेंगे। दोनों एक वृक्ष के नीचे ठहर गए । अल्पाहार किया और विश्राम कर पुन: आगे बढ़े। कुछ ही दूरी पर एक वन-प्रदेश आया। झाड़ियों के कारण अश्वों की गति कुछ धीमी हो गई। शिकार की टोह में वे आगे बढ़ते जा रहे थे । दोनों ही मार्ग से सर्वथा अपरिचित थे। आगे जाते ही धनद की नजर एक जंगली हाथी पर पड़ी। हाथी ने सूड उठाकर भयंकर गर्जारव किया। धनद चीख उठा। मनुष्यों को देख वह हाथी आक्रामक मुद्रा में आ गया। वह कुछ ही पलों में झाड़ियों में अदश्य हो गया। धनद और बिंबिसार ने समझा कि वह अन्य दिशा में चला गया है पर... कुछ आगे बढ़कर ज्यों ही बिंबिसार ने पीछे देखा, उसे यह देखकर अत्यन्त आश्चर्य हुआ कि वही हाथी तीव्र गति से उनकी ओर आ रहा है । दोनों ने अपने अश्वों की लगाम ढीली की और उन्हें सरपट दौड़ाते हुए आगे बढ़ गये। बिबिसार चाहता था कि हाथी कहीं मैदान में आए । तब उसका शिकार सुलभ हो सकेगा। उसका घोड़ा पवन वेग से सरपट चला जा रहा था । धनद धरती
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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