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________________ अलबेली आम्रपाली १२५ आवासगृह में चली आयी । आते-आते उसने गुरुदेव से कहा--"गुरुदेव ! मैं इस अभिशप्त जीवन को लेकर लोगों के बीच रहूं, यह कैसी विडम्बना है।" "पुत्रि ! तेरे जैसी एक सुशील कन्या को अभिशप्त जीवन की ओर धकेलने में मुझे कितना दुःख हुआ था, तू नहीं जान सकती । परन्तु राष्ट्र के कल्याण की भावना के आगे व्यथा और वेदना को पचा लेना पड़ता है।" और भी अनेक बातें हुईं। गुरुदेव ने जाना कि कादंबिनी अपने जीवन से अत्यन्त पीडित और व्यथित है। पर। ___कादंबिनी अपने निवास स्थान में आयी। वहां की व्यवस्थाओं को देखा। परिचारिकाओं और रक्षक-सैनिकों को देखा । वह प्रसन्न हुई। उसे लगा, आश्रम से भी यह स्थान अच्छा है। ___ एक दिन महामन्त्री वहां आए। कादंबिनी ने उचित आदर-सत्कार किया। कादंबिनी को देखते ही महामन्त्री चौंक उठे इतना रूप''इतनी मादकता... इतना तेज'। उन्होंने कहा--"पुत्रि! तेरा कल्याण हो । क्या यह स्थान तुझे पसन्द है ?" कादंबिनी ने केवल मस्तक नमाया। महामन्त्री ने कहा - "बेटी ! मगध की महान शक्ति के रूप में तू यहां है। अब तुझे अनेक महान कार्य करने हैं । इसलिए एकाध महीने तक तू नृत्य और संगीत का पूर्ण अभ्यास कर ले । उसमें निपुणता प्राप्त कर ले । फिर तुझे विशेष कार्य करने होंगे । तुझे लोगों को ऐसा आभास कराना है कि तू एक महान नर्तकी है और राज्य के अतिथि के रूप में यहां आयी है । यह तुझे याद रखना है कि लोग तुझे महान् नर्तकी के रूप में ही जानें, मानें। "लोग...?" "हां, पुत्रि ! तू एक महान नर्तकी है, ऐसा जानकर लोग तुझसे मिलने आएंगे और अनेक रसिक व्यक्ति भी आएंगे। तुझे घबराना नहीं है। तू उनका स्वागत करना उनको नृत्य से प्रसन्न करना वे जो भेंट दे, उसे ले लेना। सबके हृदय-पटल पर यह छाप डालनी है कि तू एक निपुण नर्तकी है, सौन्दर्य की प्रतिमूर्ति है और कामदेव की रति के समान है। कादंबिनी ने कांपते स्वरों में कहा -"किन्तु मेरा' 'जीवन ।" "पुत्रि ! सदा-सदा के लिए तू इन विचारों को निकाल फेंक' 'तेरा जीवन अभिशप्त नहीं है। वह आशा, उल्लास और आनन्द का प्रतीक है । ये विचार तुझे दृढ़ करने हैं।" महामन्त्री ने कहा। महामन्त्री ने उसे यह भी समझा दिया कि राजनीति में कोई किसी का नहीं होता। उसमें दया और अनुकम्पा का कोई स्थान नहीं है। उसमें निर्दयता का स्थान प्रथम है । शत्रु को परधाम पहुंचाना उसका लक्ष्य है।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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