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________________ ११२ अलबेली आम्रपाली संसार में यह बात तुझे कैसे ज्ञात हो ? जैसे नृत्य और संगीत का शास्त्र महान् शिखर को छू रहा है वैसे ही आयुर्वेद विज्ञान भी चरम सिद्धि तक पहुंचा हुआ है। इस विज्ञान से शरीर को हजारों वर्षों तक टिकाए रखा जा सकता है । रोग, विष आदि अनेक उपद्रवों से शरीर को बचाया जा सकता है-यह इस विज्ञान ने सिद्ध कर दिखाया है।" ___ आश्रम में बावन वर्षीया मनोजादेवी पाकशाला की देखरेख करती थी। आचार्य ने उसे बुलाकर कादंबिनी के सार-संभाल का भार सौंपते हुए कहा"मनोजा ! तुझे इस कन्या की पूरी सार-संभाल करनी है। इसको किसी भी प्रकार की अड़चन न हो, इसका ध्यान रखना है। यह मेरी प्रिय पुत्री तुल्य है। इसको पास वाले अतिथि गृह में रहना है।" मनोजा ने 'जी' कहकर मस्तक नमाया और वह कादंबिनी को साथ ले चल दी। २५. अभिशप्त नारी आचार्य अग्निपुत्र ने देखा, कादंबिनी राजनीतिशास्त्र में प्रवीण होने के लिए आतुर हो रही है और उसके प्राणों में उत्साह है, अनुराग है। इसलिए मात्र दो दिन के बाद ही उन्होंने विषकन्या के निर्माण का प्रयोग प्रारंभ कर डाला। आश्रम में आने के बाद तीसरे ही दिन आचार्य ने कादंबिनी को गंगा में स्नान कराकर परिशुद्ध किया और देहशुद्धि के मंत्र के द्वारा उसे अभिषिक्त कर प्रयोगशाला में ले आये। प्रयोगशाला को देखते ही कादंबिनी चौंक उठी 'किन्तु आचार्य के आश्वासन का स्मरण करती हुई वह शांत रही, उत्साह को पूर्ववत् बनाए रखा। ____ कादंबिनी ने शण के वस्त्र धारण कर रखे थे । उसे शण से निर्मित एक आसन पर बिठाया। फिर प्रमुख शिष्य एक घटिकायन्त्र ले आया और गुरुदेव के पास रखकर चला गया। उस यन्त्र से समय का अनुमापन किया जाता था। ____ आचार्य अग्निपुत्र बोले-"पुत्रि ! किसी भी प्रकार के विष से तेरी मृत्यु न हो इसलिए मेरे इस प्रयोग से तेरी काया स्वस्थ, सुदृढ़ और विषापहारी बन जाएगी । यह कार्य अत्यन्त कठिन है। इसमें हम दोनों के धर्य की परीक्षा होगी... किन्तु मैं तेरी काया को विष-प्रतिकारक बना डालूगा। क्या तू इतना धैर्य रख सकेगी?" ___ "हां, गुरु देव ! प्रारंभ किये हुए कार्य को अधूरा छोड़ने में मेरा विश्वास नहीं है।" कादंबिनी ने उत्साह भरे स्वरों में कहा। "कादंदिनी ! कोई भी सिद्धि तप और बलिदान मांगती है । सिद्धि भौतिक हो या आध्यात्मिक, दोनों के लिए शक्ति अपेक्षित होती है। मुझे तेरे पर अनेक
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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