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________________ ११० अलबेली आम्रपाली विज्ञान को हथेली में क्रीड़ा करानी हो तो उसे नारी से दूर रहना चाहिए । उसे सदा जागृत रहना चाहिए। क्योंकि संसार के सभी आकर्षणों में पुरुष के लिए नारी सर्वोत्कृष्ट आकर्षण है और उसमें पुरुष के गर्व को खंडित करने की शक्ति भी है।" ऐसे विचारों से ओतप्रोत गुरुदेव ऐसी सुन्दर कन्या को आश्रम में क्यों लाये हैं ? इस सुन्दरी के साथ दूसरा कोई नहीं है, क्यों ? यह सुन्दरी कौन होगी? शिष्यों के मन में ये प्रश्न उभर रहे थे। इतने में ही आचार्य अपने एक शिष्य से बोले- वत्स ! आचार्य शिवकेशी कहां हैं ?" ___ "प्रयोगशाला में हैं, गुरुदेव !" "मेरे निवासगृह के पास वाले कुटीर को साफ करो। देवी कादंबिनी वहां रहेगी।" फिर आचार्य कादंबिनी की ओर देखकर बोले - "पुत्रि! यह मेरा पद्माश्रम है । नगर से दूर होने के कारण लोगों का आवागमन यहां कम होता है। जिसको अध्ययन करना होता है उसके लिए एकान्त आवश्यक होता है। और माश्रमवासियों का जीवन वैभव, विलास और सुख-सुविधाओं से दूर रहता है। आश्रम में जीवन को दीर्घ बनाने वाली शांति, अध्ययन को प्रेरित करने वाली स्वस्थता और आरोग्य को पोषण देने वाली शक्ति प्रचुर मात्रा में होती है। मुझे विश्वास है कि तुझे आश्रम-जीवन में जरूर आनंद मिलेगा।" ___ "जी" कहकर कादंबिनी चारों ओर देखने लगी। उसे पहले ही क्षण आश्रम का परिवेश मन को भा गया। __आचार्य ने फिर कहा-'पुत्रि ! अब तू मेरे पीछे-पीछे चली आ । वहां मेरी कुटीर में तू विश्राम कर, फिर अपने स्थान पर चल देना।" "जी" कहकर कादंबिनी गुरुदेव के पीछे-पीछे चलने लगी। वहां खड़े हुए शिष्यों के मन की द्विधा शांत नहीं हुई। वह और अधिक बढ़ गयी। उन्होंने सोचा, ऐसी सुन्दर तरुणी को अपने निवास में कैसे रखेंगे?" आचार्य अग्निपुत्र के निवासखंड वाले खंड में प्रवेश करते ही कादंबिनी कांप उठी। वहां अनेक पशुओं के अस्थिपंजर व्यवस्थित रूप से रखे हुए थे । आचार्य वहां से दूसरे खंड में गए। वहां प्रवेश करते ही कादंबिनी चीख उठी, क्योंकि उस खंड में अनेक पिंजरे पड़े थे और उनमें नानाविध रंग-बिरंगे सांप पड़े थे। कादंबिनी की चीख सुनकर आचार्य वहां रुक गए और बोले-"पुत्रि ! डरने की कोई बात नहीं है । ये सारे जीव-जन्तु आश्रमवासी ही हैं।" कादंबिनी ने सोचा, ये आश्रमवासी कैसे हो सकते हैं ? ये मनुष्य तो नहीं हैं, भयंकर विषधर हैं। पर वह कुछ बोली नहीं। आचार्य बोले-"पुत्रि ! इनको देखकर नव आगन्तुक व्यक्ति को भय लगता है, पर ये सारे अभ्यास के साधन हैं।"
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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