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________________ अलबेली आम्रपाली १०७ बिबिसार आम्रपाली की स्नेहसिक्त दृष्टि को झेलता हुआ उसके पीछे-पीछे चलता गया। वे दोनों प्रासाद की छठी मंजिल पर आए । आम्रपाली बोली-"महाराज ! श्रम के लिए क्षमायाचना । आज अपने नवजीवन का मंगल दिन है। प्रथम प्रेम के प्रतीक पुष्पों से मैं आपका सत्कार करना चाहती हूं।" ___"देवि ! तेरे नयन, तेरा हृदय और तेरा कोमल मन नंदनवन के कोमल फूलों से भी अत्यधिक कोमल और मधुर है । उनसे तूने मेरा स्वागत कर दिया है।" कहते हुए बिंबिसार ने अपना एक हाथ आम्रपाली के कंधे पर रखा। ____ कुछ ही समय पश्चात् एक दासी श्वेत और लाल फूलों की दो मालाएं एक स्वर्ण थाल में रखकर ले आई। सूर्यास्त की तैयारी थी। प्रकाश स्वच्छ था। सूर्यास्त का सुहावना प्रकाश पश्चिम के झरोखे से भीतर प्रविष्ट हो रहा था। __ आम्रपाली ने श्वेत पुष्पों की माला दोनों हाथों से ले सलज्जभाव से बिबिसार के गले में पहनाई और वह तत्काल स्वामी के चरणों में नत हो गई। बिबिसार ने रक्तपुष्पों की माला, नत आम्रपाली के गले में डाली और दोनों हाथों से उसे खड़ी करते हुए कहा-"प्रिये ! यह माला तो कल कुम्हला जाएगी, किंतु माला पहनाने की पृष्ठभूमि में जो भावना है वह हमारे जीवन में नवनवोन्मेष भरती रहेगी।" "मैं धन्य हो गई. 'आप मेरे सर्वस्व हैं.. मेरे माता-पिता का स्वप्न आज साकार हुआ है।" वन से आम्रपाली के सुरक्षित लौटने की बात चारों ओर फैल गई। जो रक्षकदल उसकी टोह में वन-प्रदेश में गए थे, वे सारे निराश लौट आये थे । आम्रपाली की मुख्य परिचारिका माध्विका और आर्य शीलभद्र भी निराश लौटे गणनायक सिंह ने आम्रपाली के लोट आने के समाचार सुने । वह सप्तभूमि प्रासाद पर आया। उस समय आम्रपाली स्नानागार में थी। गणनायक प्रासाद के एक कक्ष में आम्रपाली की प्रतीक्षा में बैठे, इतने में ही श्वेत और सादी वेशभूषा में आम्रपाली ने खंड में प्रवेश किया। वह दोनों हाथ जोड़कर गणनायक के सामने खड़ी हो गई। सिंहनायक ने कहा--"बेटी ! तुझे कुशल देखकर मेरा मन अत्यन्त प्रसन्न है। किसी प्रकार की चोट तो नहीं आयी।" "नहीं, पूज्यश्री ! मैं धर्म के प्रताप से बच गयी।" "पुत्रि ! स्त्रियों के लिए मृगया का साहस उचित नहीं होता।" "आपकी बात सही है, परन्तु यौवन के आवेश में बुद्धि अपनी मर्यादा का ख्याल नहीं रख सकती।" आम्रपाली ने कहा।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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