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________________ १. वासरी आसोज का महीना। शरद् पूर्णिमा की निशा। आकाश में चांद अपनी सोलह कलाओं से चमक रहा था। शरद् पूर्णिमा के चांद की ओर देखने वाले को ऐसा लगता कि चांद से झरने वाला अमृत उसकी आंखों की राह से हृदय में उतर रहा है। जैसे वसंत ऋतु प्राणी मात्र के मन को कल्लोलित करता है, वैसे ही शरद् ऋतु भी सचराचर विश्व को आनन्दविभोर बना देता है। वसंत ऋतु में नर-नारी कामदेव के मंदिर में अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए जाते हैं, अर्चा-पूजा करते हैं, वैसे ही शरद् ऋतु में चन्द्रमा से आरोग्य की याचना करते हुए उत्सव मनाते हैं। शरद का चांद केवल मनुष्यों के लिए ही प्रेरक नहीं होता, वह सृष्टि के प्रत्येक अंश के लिए औषधरूप होता है। शरदचन्द्र की किरणों से स्नात औषधियां अमृत का संचय कर अपने-अपने गुणधर्म को स्थिर बनाती हैं। आसपास में सघन वनप्रदेश है। इस निबिड वनप्रदेश में एक पल्ली है। इस पल्ली में केवल पारधियों के ही परिवार रहते थे। पारधियों के दो सौ परिवार दो कोस की परिधि में दो-दो, चार-चार के झुमके के रूप में बसे हुए थे। इस पल्ली का कोई नाम नहीं था। इस गांव पर न किसी का अधिकार था और न यहां किसी की हुकूमत थी। न राजा था और न कोई अधिकारी। मात्र व्यवहार और व्यवस्था की दृष्टि से यह पल्ली अंगदेश के राजा के वनप्रदेश में है...... किन्तु अंगदेश के राजा का अधिकारी या रक्षक यहां कोई नहीं रहता। यहां से अंगदेश की प्रसिद्ध राजधानी चंपा नगरी केवल बीस कोस की दूरी पर थी। इतनी भव्य, रमणीय और समृद्ध चंपा नगरी इतनी निकट होने पर भी पल्लीवासी लोग वहां जाने के लिए कभी नहीं ललचाते थे। उनका सारा संसार और व्यवहार उस वनप्रदेश में छितरा हुआ था। इस पल्ली के सभी दो सौ परिवार पारस्परिक मेलजोल से रहते थे और अपने द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करते थे। इस विधि से उनकी अनेक पीढ़ियां बीत चुकी थीं। पूर्वभव का अनुराग / ७
SR No.032422
Book TitlePurvbhav Ka Anurag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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