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________________ सरिता की भांति शोभित हो रहा था। स्त्रियों का यह दूषण माने या भूषण, सभी स्त्रियां अपने आपको परम सुंदरी मानती हैं और सभी अपने-अपने रूप की प्रशंसा करती हैं। यह रूप अस्थायी है, अस्त होने वाला है, इस सत्य को जानती हुई भी प्रौढ़ स्त्रियां भी इस सत्य को भूल जाती हैं। प्रौढ़ और अन्य स्त्रियों का समूह रूप की गंगा की भांति आगे बढ़ रहा था। प्रथम यौवन की मस्ती में अनुभव का अमृत नहीं होता, फिर भी प्रवृत्तिजन्य होने से वह आकर्षक और सुहावना होता है। जबकि ढलते यौवन में अनुभव की अमृतभरी मस्ती खिल उठती है। क्योंकि इस उमंग में झूलती आई स्त्री को यौवन की विदाई वेला निकट आ गई है, यह स्मरण भी नहीं रहता। ये प्रौढ़ नारियां स्थान-स्थान पर पक्षियों के कलरव और उनके प्रेम कल्लोलों को देखकर खड़ी रह जाती थीं और स्वयं की यौवन मस्ती उस समय आंखों के सामने नाचने लगती थी। चलते-चलते एक सप्तपर्ण का पेड़ दीखा ...... पवन के कारण सप्तपर्ण के सुंदर श्वेत और बड़े पुष्प नीचे गिर पड़े थे। एक सखी ने सुनन्दा के सामने देखकर कहा-'सप्तपर्ण के ये श्वेत पुष्प पृथ्वी पर गिर पड़े हैं-बेचारे मुरझा जाएंगे।' तत्काल दूसरी एक विनोदप्रिय स्त्री बोली-'ये तो सप्तपर्ण के पुष्प नहीं 'तब तो तुमने कभी सप्तपर्ण के फूलों को देखा ही नहीं है, ऐसा प्रतीत होता है।' सुनंदा ने कहा। 'देवी! आपने मेरे कथन का आशय नहीं समझा। जो वृक्ष पर वृन्त से आबद्ध हैं वे तो सप्तपर्ण के ही पुष्प हैं, परन्तु जो भूमि पर पड़े हैं वे नहीं।' तीसरी बोली-'तो फिर ये कौन-से फूल हैं?' 'ये फूल हैं ही नहीं।' हे...... दो-चार स्त्रियां आश्चर्यचकित नयनों से उस विनोदप्रिय स्त्री की ओर देखने लगीं।' विनोदप्रिय सखी ने कहा-'फूल तो तब तक ही फूल रहता है जब तक वह अपनी डाली में लगा रहता है। वहां से च्युत होने के बाद वह डंठल मात्र रह जाता है। __ स्त्रियों का विनोद कभी-कभी अनन्त हो जाता है। सुनंदा बोली-अभी हमें दूर तक जाना है।' हम आगे चलें। पद्म सरोवर के किनारे दो-तीन सप्तपर्ण के वृक्ष हैं .... सभी उसी ओर अग्रसर हुए। और सभी ने देखा कि पद्मरेणु के स्पर्श से पीले पड़े सप्तपर्ण के फूलों को देखकर सभी तरंगलोला की दृष्टि ही सराहना करने लगीं। ६८ / पूर्वभव का अनुराग
SR No.032422
Book TitlePurvbhav Ka Anurag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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