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________________ माता कल्याणी ने नवदंपती को असली मोतियों की बौछार कर वर्धापित किया। फिर नवदंपती को कुलदेवी के मंदिर में ले गए। वहां कुल परंपरा के अनुसार वर-वधू ने कुलदेवी के समक्ष कुछ क्रियाएं संपन्न की। सायं धनदेव सेठ के यहां भोज का कार्यक्रम था। भोजन-समारंभ से निवृत्त होने के पश्चात् धनदेव सेठ ने सभी को यथायोग्य भेंट देकर विसर्जित किया। __ पद्मदेव मित्रों से घिरा बैठा था और तरंगलोला अपने पारिवारिक स्त्रियों से घिरी हुई थी। रात्रि का पहला प्रहर पूरा हुआ। पद्मदेव की मित्र मंडली जमी बैठी थी। सभी पद्मदेव के साहस की प्रशंसा कर रहे थे। एक मित्र बोला-तुम दोनों को मुक्ति दिलाने वाले रुद्रयश की खोज करनी चाहिए। उसने महान् उपकार किया है... यदि उसका हृदय करुणामय नहीं हुआ होता तो न जाने तुम दोनों की क्या दशा होती? पद्मदेव बोला-'मित्र! रुद्रयश को खोजना शक्य नहीं है, क्योंकि वह अपने पाप का प्रायश्चित्त करने के लिए चला गया है। वह किस दिशा में गया, यह भी ज्ञात नहीं है। उसने कुछ भी नहीं बताया। इसलिए उसे कैसे खोजा जाए? मैंने सुना है कि जब नगरसेठ ने लुटेरों की बात महाराजा को बताई तब महाराजा उदयन ने कहा था कि पद्मदेव को साथ में लेकर लुटेरों के आवास-स्थल को जानना चाहिए और उस पर राज्य का कब्जा होना चाहिए। परन्तु कठिनाई यह है कि गुफानगरी के गुप्तमार्ग को हमने रात्रि में देखा था, अतः उसका स्पष्ट चित्र हमारे मस्तिष्क में नहीं है। यदि रुद्रयश मिल जाए तो यह कार्य सरल हो सकता है, अन्यथा नहीं। इसलिए मैं रुद्रयश की टोह में दो-चार व्यक्तियों को भेजूंगा।' पद्मदेव की बात उचित लगी। रात्रि के दूसरे प्रहर की तीन घटिकाएं बीत चुकी थीं। पद्मदेव की माता ने तरंगलोला को ऊपरी मंजिल में शृंगारित शयनकक्ष में भेज दिया। ___फूलों की महक से महकता शयनकक्ष... एक स्वर्णखचित पर्यंक पर मसृण शय्या बिछी थी.....' शय्या पर पचरंगी कौशेय की चादर बिछी हुई थी। पर्यंक के चारों ओर विविध पुष्पों की मालाएं कलात्मक ढंग से योजित थी। लग रहा था मानो वह पुष्पों का परदा हो अथवा पुष्पों से शोभायमान स्नेहिल शय्या। उसमें दो दिशाओं में दो दीपक झिलमिला रहे थे। उनका मंद-मंद प्रकाश पूरे खंड में बिखर रहा था। एक त्रिपदी पर स्वर्णथाल पड़ा था। पूरे कक्ष को सुरभित करने के लिए अनेक गन्धद्रव्य छिड़के हुए थे। अभी सभी बातों में मशगूल हो रहे थे। पद्मदेव की मां ने एक-एक कर सबको विदा किया। मां पद्मदेव के खंड में गई। मां को देखते ही पद्मदेव खड़ा हो गया और बोला-'क्यों मां?' पूर्वभव का अनुराग / १३७
SR No.032422
Book TitlePurvbhav Ka Anurag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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