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________________ के सूचक हैं। क्योंकि उनकी कोई क्रिया उपलब्ध नहीं है। क्रिया ही अस्तित्व की अभिव्यक्ति है। क्रिया दो प्रकार की है- होना और करना। होना भी क्रिया है, करना भी क्रिया है। होना (Being) स्वाभाविक क्रिया है। करना (Becoming) वैभाविक क्रिया है। क्योंकि करने में एक कर्ता (Subject) है, एक कार्य (Object) है। केवल कर्त्ताभाव में स्वाभाविक क्रिया है। कर्म-संयोग से होने वाली वैभाविक क्रिया है। हमारी कोई भी वैभाविक क्रिया ऐसी नहीं होती जहां बंधन न हो। दोनों में अविनाभावी सम्बन्ध है। तर्कशास्त्र में - 'यत्र-यत्र धूमस्तत्र-तत्र वह्नि:' जहां जहां धुआं है, वहां वहां अग्नि है, यह निश्चित व्याप्ति है, पर वह एक तरफा है। क्योंकि धुआं है वहां अग्नि अवश्यंभावी है, अग्नि है वहां धुआं होगा- निश्चित नियम नहीं, इसमें विकल्प की संभावना है। प्रवृत्ति एवं बंधन में दोहरी व्याप्ति है। प्रवृत्ति है, वहां बंधन है, बंधन है, वहां प्रवृत्ति है। प्रवृत्ति के पीछे प्रेरक तत्व है- राग-द्वेष। इनसे ही कर्मों का आश्रवण होता है। सृष्टि के मूलभूत तत्त्व छह हैं- धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और जीव। उनमें प्रथम तीन निष्क्रिय हैं। निष्क्रियता का आशय क्रियाहीनता नहीं बल्कि देशान्तर प्राप्ति रूप गति से है। वे जहां है, वहीं अवस्थित है। स्व-स्वरूप में परिणमन भी करते हैं। जीव और पुद्गल दोनों सक्रिय हैं। काल-सक्रियता में सहचारी है। जीव में परिस्पंदना और अपरिस्पंदना रूप दोनों प्रकार की क्रिया होती हैं। क्रिया और परिणाम क्रिया के दो प्रकार हैं-जीव क्रिया और अजीव क्रिया। जीव अपने अध्यवसायों, परिणामों से जो क्रिया करे वह जीव क्रिया है। जीव जिससे पुद्गल प्रचय को कर्म रूप में परिणत करता है उसे अजीव क्रिया कहते हैं। जीव क्रिया और अजीव क्रिया- ये दोनों क्रिया के सामान्य प्रकार है। इसमें सूत्रकार का आशय यह है कि क्रियाकारित्व जीव और अजीव का समान धर्म है। यहां वही अजीव क्रिया विवक्षित है जो जीव के निमित्त से अजीव (पुद्गल) का कर्म के रूप में परिणमन रूप है। जीव क्रिया के दो भेद हैं- सम्यक्त्व क्रिया और मिथ्यात्व क्रिया। अभयदेव सूरि ने सम्यक्त्व क्रिया का अर्थ तत्त्व में श्रद्धा करना और मिथ्यात्व क्रिया का अर्थ अतत्त्व में श्रद्धा करना किया है। आचार्य अकलंक ने सम्यक्त्ववर्धिनी प्रवृत्ति को सम्यक्त्व - (Urges that lead to enlightened world view) और मिथ्यात्वहेतुक प्रवृत्ति क्रिया के प्रकार और उसका आचारशास्त्रीय स्वरूप 31
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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