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________________ तथा अक्रियावाद को परिस्थितिवाद कहा जा सकता है। हमारे सामने दो दृष्टिकोण है। पहला दृष्टिकोण है कि जीवन में जो कुछ घटित हो रहा है उसका निमित्त बाह्य कारण है परिस्थिति है। जैसी परिस्थिति है मनुष्य का आचरण एवं व्यवहार तदनुरूप बन जाता है। दूसरे दृष्टिकोण से उसका कारण बाह्य नहीं। भीतरी कारण है, वह है क्रियात्मक चिन्तन। जब तक मनोविज्ञान विकास में नहीं आया तब तक सारा दोष बाह्य कारणों को दिया जाता था। विज्ञान के क्षेत्र में आधुनिक मनोविज्ञान ने नये द्वार का उद्घाटन किया। उसके अनुसार जीवन की समग्र व्याख्या अवचेतन मन के आधार पर की जाने लगी। इस प्रकार कर्मवाद अथवा क्रियावाद का सिद्धांत मनोविज्ञान के क्षेत्र में मान्य हो चुका है। संदर्भ सूचि 1. दीर्घनिकाय भाग 1, ब्रह्मजाल सूत 2. श्वेताश्वेतर उपनिषद् ; 1/2, 6/1 3. मैत्रायणी भूमिका; 22 4. गोम्मटसार 2 (कर्मकाण्ड); गा. 877-888 पृ. 1238-1243 5. आचरांग वृत्ति; 1/1/1/4 6. स्थानांग वृत्ति; 4/4/345 7. प्रवचनसारोद्धार; 1/88 8. गोम्मटसार; 787 9. भगवती; 30/1 10. सूयगडो; 1/12/1 चत्तारि समोसरणाणि, पावादुया जाई पुढो वयंति । किरियं अकिरियं विणयंति तइयं अण्णाणं माहंसु चउत्थमेव ।। 11. सूत्रकृतांग; 1/6/27 12. स्थानांग; 4/530 13. भगवती; 30/1/824 14. कषाय पाहुड,भाग.1 ; पृ.134 15. हरिभद्रीया टीका पत्र; 8/6-2 16. उत्तराध्ययन टीका; 18/23 17. सूत्रकृतांग नियुक्ति ; गा. 111-112 18. प्रवचन सारोद्धार; उत्तर भाग, 344/1 19. सूत्रकृतांग नियुक्ति; गा. 112, असियसयं किरियाणं, अक्किरियाणं च होइ चुलसीती। अण्णाणिय सत्तट्ठी, वेणड्याणं च बत्तीसा ॥ क्रिया की दार्शनिक पृष्ठभूमि 25
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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