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________________ भाष्यानुसारिणी टीका में भी कहीं-कहीं कुछ परिवर्तन के साथ नाम मिलते है। लगता है उन्होंने भी अकलंकदेव की सूचि के आधार पर ही नाम-सूची संकलित की है। श्वेताम्बर साहित्य में भाष्यानुसारिणी टीका के अतिरिक्त और कहीं इन नामों का उल्लेख नहीं है। दिगम्बर साहित्य में भी अकलंकदेव से पूर्व कोई उल्लेख नहीं मिलता। उन्होंने कहां से उद्धृत किया, यह प्रमाण पुरस्सर कहना कठिन है। चार समवसरण एवं 363 मतों का निरूपण उत्तराध्ययन और स्थानांग में भी प्राप्त है। सूत्रकृतांग के अनुसार चारों वाद श्रमण और वैदिक दोनों परम्परा में थे। सूत्र की रचनाशैली के आधार पर 'एगे' शब्द विभिन्न मतवादों का संकेत है। कतिपय शब्द प्रयोग से यह स्पष्ट ज्ञात होता है। गौशालक, संजयवेलट्ठिपुत्त पकुधकात्यायन आदि श्रमण परम्परा के आचार्यों का नामोल्लेख भी है। - महावीर का युग दर्शन-वाङ्गमय के विकास का युग था। तत्कालीन दार्शनिक विभिन्न परम्पराओं से जुड़े हुए थे लेकिन परम्परा की प्रतिबद्धता उनके निरपेक्ष चिन्तन के लिये बाधक नहीं थी। ब्राह्मण परम्परा का प्रतिनिधित्व ब्राह्मणों के हाथ में था। जैन और बौद्ध श्रमण परम्परा के संवाहक थे। पहली परम्परा में ज्ञान का प्राधान्य था, दूसरी में ज्ञान के साथ क्रिया का भी उतना ही महत्त्व था। जैन दर्शन उदारवादी दर्शन है, अनेकान्तवादी है। जैन दर्शन में क्रियावाद - आस्तिक्यवाद के अर्थ में और अक्रियावाद नास्तिक्यवाद के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। यह सारी चर्चा प्रवृत्ति-निवृत्ति को लिये हुए हैं। भगवान महावीर ने चारों वादों की समीक्षा कर क्रियावाद की स्थापना की। इसका अर्थ उनका एकांगी दृष्टिकोण नहीं था। इसलिये उनके दर्शन को सापेक्ष-क्रियावाद की संज्ञा दे सकते है। भगवान महावीर जैनधर्म के प्रवर्तक नहीं, उन्नायक के रूप में जाने जाते है। प्रवर्तक भगवान ऋषभ थे। वैदिक और पौराणिक दोनों साहित्य में श्रमण धर्म के प्रवर्तक ऋषभ का उल्लेख है। उनका धर्म विभिन्न युगों में विभिन्न नामों से अभिहित होता रहा है। भगवान महावीर के अस्तित्व -काल में श्रमणों के प्रसिद्ध चालीस सम्प्रदाय थे उनमें पांच अधिकतम प्रसिद्ध व प्रभावशाली थे। 1. निग्रंथ - भगवान महावीर का शासन 2. शाक्य - तथागत का शासन (बौद्धदर्शन) क्रिया की दार्शनिक पृष्ठभूमि 21
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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