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________________ आदि पर्व में उल्लेख है कि महाराजा जनमेजय के नागयज्ञ में जैमिनी उद्गाता का कार्य करते थे। साम संहिताकारों के लांगल वर्ग में भी एक जैमिनी का नाम आता है। मीमांसा दर्शन के रचयिता भी जैमिनी नाम के ऋषि थे। अज्ञानवादियों में उनका उल्लेख किया गया है या अन्य किसी का, यह निश्चित रूप से कहना संभव नहीं है। ___ शास्त्रकारों ने ज्ञान-गर्वोन्नत अज्ञानवादियों की मनोवृत्ति का विश्लेषण करते हुए अज्ञान के दुष्परिणामों को स्पष्ट किया है। उनका कहना है कि जैसे- पिंजरे में आबद्ध पक्षी उसे तोड़कर बाहर निकलने में असमर्थ है। वैसे ही अज्ञानवादी भी अपने मतवाद के घेरे से बाहर निकल नहीं सकते। प्रत्युत संसार के जाल में और अधिक दृढ़ता से बंध जाते हैं। __अज्ञान श्रेयोवादी की तुलना महावीरयुगीन संजयवेलट्ठि से की जा सकती है। बौद्ध वाङ्गमय में विवेचित उनके प्रसंग से स्पष्ट हो जाता है। परलोक के सम्बन्ध में प्रश्न पूछने पर संजयवेलट्ठि का उत्तर था- आप प्रश्न पूछ रहे हैं। यदि मैं समझू कि परलोक है और आपको बतलाऊं, परलोक है भी, नहीं भी। वे इस प्रकार की भाषा का प्रयोग करते थे। निश्चित उत्तर कभी नहीं दिया। वे किसी भी प्रश्न का उत्तर निश्चित भाषा में देना उचित नही मानते थे। निष्कर्ष रूप में तत्त्वविषयक अज्ञेयता अथवा अनिश्चितता ही अज्ञानवाद का आधार है। अज्ञानवादियों की कुल 67 शाखाएं हैं -उनका गणनाक्रम इस प्रकार है जीव-अजीव आदि नौ पदार्थों का सत्-असत्, सदसत्, अवक्तव्य, सद् अवक्तव्य, असद् अवक्तव्य तथा सद्-असद् अवक्तव्य- इन सात भंगों से गुणा करने पर 9x7=63 भेद होते हैं।80 उनके अतिरिक्त सद्भावोत्पत्ति को कौन जानता है ? उसके जानने से क्या लाभ ? असत् भावोत्पत्ति को कौन जानता है ? उसके जानने से क्या लाभ है ? असद्भावोत्पत्ति को कौन जानता है? और उसके जानने से क्या लाभ है? ये चार भंग और मिलाने से 9x7+4 (उत्पत्ति के) 67 मत होते हैं। जीव अजीव पुण्य पाप आश्रव संवर निर्जरा बंध मोक्ष सत्व असत्व सदसत्व अवाच्यत्व सदवाच्यत्व असदवाच्यत्व सदसदवाच्यत्व क्रिया की दार्शनिक पृष्ठभूमि
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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