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________________ के थे। ये दोनों एक ही हैं या भिन्न, नहीं कहा जा सकता। फिर भी अकलंकदेव ने उन्हीं में से एक नाम निर्देश किया जान पड़ता है। अधमुंड एक उपनिषद् का नाम मुण्डक है। मुण्डक का संबंध अश्वमुंड से हो सकता है। आपलायन षडू गुरु शिष्य ने ऋक् सर्वाक्रमणी वृत्ति की भूमिका में लिखा है कि शौनक ने ऋग्वेद सम्बन्धी दस ग्रंथ लिखे हैं। उनके शिष्य आश्वलायन ने तीन ग्रंथों का सृजन किया है। वे तीन है- श्रौतसूत्र, ब्रह्मसूत्र और आरण्यका संभवतः अकलंकदेव ने उनका अनुकरण किया है। . ......... . .... ज्ञान रहित केवल क्रिया से मुक्ति संभव है- यह क्रियावादियों का मूल मन्तव्य है। वस्तुतः एकान्त रूप में क्रिया का अस्तित्व मानने पर समस्त ज्ञानात्मक व्यवहारों का उच्छेद हो जाता है। दूसरी ओर सम्यग् ज्ञान युक्त क्रिया ही मोक्ष की हेतु है। ज्ञान निरपेक्ष क्रिया अथवा क्रिया निरपेक्ष ज्ञान दोनों अपने आप में अपूर्ण हैं। दोनों के समन्वय से ही अभीष्ट प्रयोजन की सिद्धि संभव है। दशवैकालिक का सूक्त “पढ़मं णाणं तओ दया" भी इसी तथ्य की पुष्टि करता है। अकियावाद ... . . ....... .... .. . रूप परिचय एवं स्वरूप नियुक्तिकार ने नास्ति के आधार पर अक्रियावाद की व्याख्या की है। 7 जो आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते, उन्हें अक्रियावादी कहा जाता है। बौद्ध इस विचारधारा के संपोषक माने जाते हैं। उनके अभिमत से प्रत्येक वस्तु क्षणिक है। किसी भी पदार्थ की एक क्षण से अधिक सत्ता नहीं रहती। भूत, भविष्य के साथ वर्तमान का कोई भी सम्बन्ध नहीं है। क्षणिक वस्तु में क्रिया भी असंभव है। परिणामस्वरूप तजनित कर्मबंध भी नहीं होता। यह विचारधारा मुक्ति के लिए चित्त - शुद्धि को आवश्यक मानती हैं- “अक्रियावादिनो ये ब्रूवते किं क्रियया चिद्धशुद्धिरेव कार्या ते च बौद्धा इति"। सूत्रकृतांग के प्रथम अध्ययन में जहां बौद्धों को क्रियावादी कहा गया है वहीं समवसरण अध्ययन की चूर्णि में बौद्धों को अक्रियावादी माना है। 38 मुनि जंबुविजयजी क्रिया की दार्शनिक पृष्ठभूमि
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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