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________________ भावात्मक स्थिति में बढ़े हुए आवेश की वृत्ति युयुत्सावृत्ति को जन्म देती है । युयुत्सा से अमर्ष, अमर्ष से आक्रामकता जन्म लेती है। इन मानसिक आवेगों, क्रिया-प्रतिक्रियाओं का हमारे आचरण और व्यवहार पर होने वाला प्रभाव समझ सकते हैं। आवेश की मनोवृत्ति गर्व की मनोवृत्ि माया की मनोवृत्ति संग्रह की मनोवृत्ति गाली युद्ध, आक्रमण, प्रहार, हत्या आदि । - - घृणा, क्रूर व्यवहार, अमैत्री | अविश्वास, अमैत्रीपूर्ण व्यवहार । शोषण, अप्रामाणिकता, निरपेक्ष व्यवहार, क्रूर व्यवहार, विश्वासघात । -- 1 उपर्युक्त दुष्प्रभावों के अलावा इनसे वैयक्तिक जीवन में आध्यात्मिक विकास भी अवरूद्ध होता है। मनोविज्ञान में यद्यपि मन के भिन्न-भिन्न स्तरों एवं उनकी कार्य-प्रणाली पर विमर्श किया गया है। जैन दर्शन में भले उस रूप में विश्लेषण नहीं मिलता हो किन्तु उनके मूल स्रोतों पर विस्तृत व्याख्याएं उपलब्ध हैं। मन और संज्ञा मन का दूसरा नाम 'संज्ञा' है। संज्ञा शारीरिक आवश्यकताओं एवं भावों की मानसिक संचेतना है। यह परवर्ती व्यवहार की प्रेरक बनती है। संख्या की दृष्टि से संज्ञाओं तीन वर्ग बन जाते है। 386 संज्ञाओं के प्रकार (1) संज्ञाओं के चार प्रकार - आहार, भय, मैथुन और परिग्रह | 73 (2) संज्ञाओं के दस प्रकार - आहार संज्ञा, मान संज्ञा, भय संज्ञा, माया संज्ञा, मैथुन संज्ञा, लोभ संज्ञा, परिग्रह संज्ञा, लोक संज्ञा, क्रोध संज्ञा, ओघ संज्ञा । 74 ( 3 ) चौदह प्रकार - आहार, मोह, लोभ, भय, विचिकित्सा, शोक, मैथुन, क्रोध, लोक, परिग्रह, मान, धर्म, सुख दुःख, माया | 75 (4) सोलह प्रकार 76 - इस वर्गीकरण में शारीरिक या जैविक, मानसिक एवं सामाजिक प्रेरकों का समावेश है। संज्ञा की उत्पत्ति बाह्य और आभ्यन्तर उत्तेजना से अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्या: क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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