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________________ 1. चेतना व्यक्ति विशेष से सम्बन्ध रखती है। चेतना प्राणी का लक्षण है। । 2. चेतना में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है। 3.प्रत्येक चेतना में अर्थपूर्ण ढंग से विचारों का नैरन्तर्य बना रहता है। हमारी मानसिक क्रियाएं निरन्तर चलती रहती है। सुषुप्त अवस्था हो या मूर्च्छित, विचारों का सिलसिला कभी टूटता नहीं। इस निरन्तरता के कारण ही वस्तुओं, परिस्थितियों, व्यक्तियों, घटनाओं आदि की अवगति प्राप्त होती है। विचार व्यक्ति की अपनी निजी संपत्ति है। 4. चेतना चयनात्मक होती है। यह हमारी मनोवृत्ति एवं मूल आवश्यकताओं आदि पर निर्भर रहती है। चेतना के स्तर फ्रायड ने मन के तीन स्तर माने हैं- (1) चेतन (2) अवचेतन और (3) अचेतन। (1) चेतन मन- यह मन का वह स्तर है जिसमें व्यक्ति को अपनी क्रियाओं, इच्छाओं, विचारों, घटनाओं का वर्तमान में अवबोध रहता है। इसे चेतना का केन्द्र कहते हैं। चेतन मन क्रियाओं का नियंत्रण और संचालन करता है। चेतन मन के तीन पक्ष हैं- (1) ज्ञानात्मक, (2) भावात्मक और (3) चेष्टात्मक। तीसरे पक्ष चेष्टात्मक का कहीं संकल्पात्मक या क्रियात्मक नाम से भी उल्लेख मिलता है। ये तीनों सम्मिलित रूप से कार्य करते है। किसी वस्तु को देखना, उसके स्वरूप को समझना ज्ञानात्मक है। उसे किसी दूसरे को देने का चिन्तन भावनात्मक है। उसे देना क्रियात्मक है। इस प्रकार चेतनमन की प्रत्येक क्रिया में तीन प्रक्रियाएं होती हैं। (2) अवचेतन मन- अवचेतन मन, चेतन और अचेतन दोनों के बीच का स्तर है। यह सीमावर्ती प्रदेश है। इसमें अचेतन वासनाओं की घुसपैठ चलती है। अवचेतन मन सभी स्मृतियों, इच्छाओं का भंडार हैं। वर्तमान में व्यक्ति को उनका ज्ञान नहीं रहता। (3) अचेतन मन-अचेतन मन गहरी नींव है। यही मनुष्य के जीवन की भाग्यलिपि लिखता है। यह दमित इच्छाओं, वासनाओं, भावनाओं, आवेगों का संग्रहालय है। समस्त संवेग और अनुभवों का मर्म ही अचेतन मन है। व्यक्ति जिन इच्छाओं का दमन करता है, वे चेतन मन से अचेतन मन में प्रवेश कर संरक्षित रहती है। अचेतन मन एवं अवचेतन मन के बीच एक संवेदी सम्बध रहता है। यह अचेतन मन में पड़ी दमित इच्छाओं को आगे चेतन या अवचेतन मन तक जाने से रोक देता है। क्रिया और मनोविज्ञान 381
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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