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________________ तत्त्वार्थ भाष्य में ईहा, ऊह, तर्क, परीक्षा, विचारणा और जिज्ञासा- ये शब्द एकार्थक माने गये हैं।53 अवाय- अवाय निश्चयात्मक ज्ञान है। इसमें न संशय रहता है, न संभावना। ईहा ज्ञान से जाने गये पदार्थ विषयक संदेह दूर हो जाना अवाय है।54 ईहा के द्वारा गृहीत पदार्थ का निर्णय करना अवाय है। इस प्रकार जैन वाङ्गमय में अवाय की त्रिविध व्याख्याएं उपलब्ध होती है। नंदीसूत्र षट्खण्डागम और तत्त्वार्थभाष्य में अवाय के अनेक पर्याय हैं अवाय व्यवसाय बुद्धि नंदीसूत्र षट्खण्डागम तत्त्वार्थभाष्य आवर्तनता अपगम प्रत्यावर्तनता अपनोद अवाय बुद्धि विज्ञप्ति अपव्याध आमुण्डा अपेत, अपगत विज्ञान प्रत्यामुण्डा अपविद्ध, अपनुत 4. धारणा- अवाय द्वारा निर्णीत अर्थ को इस प्रकार धारण करना कि वह कालान्तर में भी स्मृति का हेतु बन सके। वह संख्येय-असंख्येय काल तक रह सकती है। धारणा जितनी पुष्ट होती है, वह धारणा उतनी ही शीघ्र और दीर्घकालिक हो सकती है। धारणा के तीन प्रकार हैं- (1) अविच्युति, (2) वासना, (3) अनुस्मरण। अविच्युति- धारणा काल में ज्ञान में एक वलय का निरन्तर बना रहना अविच्युति है। विषयान्तर होने पर धारणा वासना के रूप में परिवर्तित हो जाती है। यही वासना निमित्त विशेष से उबुद्ध होकर स्मृति का कारण बनती है।59 वासना- वासना का दूसरा नाम संस्कार है। यह अपने आप में ज्ञान नहीं है। यह अविच्युति का कार्य और स्मृति का कारण बनती है। यह दो ज्ञानों को जोड़ने वाली मध्य की कड़ी है। ___अनुस्मरण- भविष्य में निमित्त पाकर उन संस्कारों का स्मृति के रूप में उबुद्ध होना अनुस्मरण है। अविच्युति, वासना और अनुस्मरण- ये तीनों धारणा के अंग है। नंदी सूत्र में धारणा के लिये - धरणा, धारणा, स्थापना, प्रतिष्ठा, कोष्ठा शब्दों का प्रयोग हुआ है।60 अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया 378
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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