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________________ उत्सर्जन तंत्र- शरीर में सतत चलने वाली जैव रासायनिक प्रक्रिया चयापचय क्रिया के रूप में जानी जाती है। चयापचय का अर्थ है-उत्पादन और विसर्जन। चयापचय क्रियाओं के दौरान अनावश्यक एवं हानिकारक तत्त्व घन प्रवाही तथा वायु रूप में पैदा हो जाते हैं। घन पदार्थों का विसर्जन मलोत्सर्ग की क्रिया द्वारा किया जाता है। वायुस्वरूप उत्पन्न कार्बन डायोक्साईड का उच्छ्वास द्वारा निष्कासन होता है। प्रवाही और नाईट्रोजन युक्त द्रव्यों को जिन अंगों द्वारा दूर किया जाता है, उसे उत्सर्जन तंत्र कहते हैं। विसर्जन करने वाले मुख्य अंग इस प्रकार है- फुफ्फुस, त्वचा, गुर्दे (किडनी), मूत्र वाहिनियां, मूत्राशय, मूत्रमार्ग आदि। फुफुसीय एवं पाचन-तंत्रीय अपशिष्ट की चर्चा पीछे कर चुके हैं। अत: यहां मूत्र-प्रणाली में सहयोगी गुर्दे आदि के सम्बन्ध में विमर्श कर रहे हैं। शरीर में सेम के बीज के आकार वाले गुर्दो का युग्म होता है। ये सर्वाधिक श्रमशील अवयव हैं। प्रतिदिन 175 लीटर पानी इनसे गुजरता है। उससे विषैले तत्त्वों को छाना जाता है। इस क्रिया से लगभग 1.5 लीटर जितना मूत्र बनता है। मूत्राशय में उसका संग्रह होता है। मूत्र मार्ग से फिर उसे शरीर से बाहर निकाला जाता है। प्रत्येक गुर्दे में 10 लाख से कम छेद नहीं होते। गुर्दे का कार्य मूत्र का उत्पादन और उसके माध्यम से अपशिष्ट पदार्थों का निष्कासन करना है। शरीर में एक निश्चित मात्रा में पानी का होना जरूरी है। पानी को सुरक्षित रखने में उत्सर्जन तंत्र की सहायता रहती है। मूल जलीय घोल में 16 प्रतिशत पानी और 4 प्रतिशत अकार्बनीय एवं कार्बनिक अपशिष्ट द्रव्य होते हैं। अकार्बनिक द्रव्यों में मुख्यतः नमक (सोडियम क्लोराईड) तथा अन्य लवण होते हैं। कार्बनिक में यूरिया, यूरिक एसिड, एमोनिया आदि प्रमुख हैं। 1.5 लीटर मूत्र के विसर्जन में अकार्बनिक अपशिष्ट 25 ग्राम एवं कार्बनिक 35 ग्राम रहते हैं। गुों के कार्यों में अवरोध आने पर विषैले अपशिष्ट पदार्थ रक्त एवं शरीर के ऊत्तकों में बढ़कर अन्ततः शरीर को विषाक्त बना देते हैं।56(ग) शरीर की रचना बड़ी अद्भुत है। अलग-अलग अंगों एवं तंत्रों में विविध कार्यों के लिये श्रम-विभाजन व्यवस्था नैसर्गिक है। आमाशय के पास पाचन का कार्य है, उत्सर्जन तंत्र उत्सर्जना का दायित्व संभालता है। प्रत्येक अंग अपने-अपने कार्य में स्वतंत्र होते हुए भी इनमें परस्पर सामञ्जस्य है। इस व्यवस्था में नाड़ी संस्थान और अन्तःस्रावी ग्रंथि-तंत्र जिम्मेदार हैं। क्रिया और शरीर - विज्ञान 345
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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