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________________ संहनन के प्रकार 1. वज्रऋषभ नाराच 4. अर्धनाराच 2. ऋषभ नाराच 5. कीलिका (1) वज्रऋषभ नाराच संहनन- इसमें तीन शब्द प्रयुक्त हैं- वज्र, ऋषभ और नाराच। अस्थिकील के लिये वज्र, परिवेष्टन अस्थि के लिये ऋषभ और परस्पर गुंथी हुई अस्थि के लिये नाराच शब्द का प्रयोग हुआ है। जिस शरीर में हड्डियां परस्पर गुंथी हुई और परिवेष्टित हो तथा अस्थिकील द्वारा कसी हुई हो उसको वज्र - ऋषभ नाराच संहनन कहते हैं। यह सर्वोत्तम और सबसे शक्तिशाली संहनन है। ( 2 ) ऋषभ नाराच - इसमें परस्पर गुंथी हुई दो अस्थियों के छोरों पर तीसरी अस्थि का परिवेष्टन होता है। ( 3 ) नाराच - इसमें नाराच (मर्कटबंध) पूरा होता है- अस्थियां दोनों ओर से गुंथी हुई होती है। ( 4 ) अर्ध नाराच - अस्थियों के छोर परस्पर एक ओर से गुंथे हुए होते हैं। नाराच (मर्कट-बंध) आधा होता है। 318 (5) कीलिका- इसमें अस्थियों के छोर परस्पर एक दूसरे का स्पर्श किये होते हैं। ( 6 ) सेवार्त - इस संहनन में अस्थियां परस्पर जुड़ी हुई नहीं होती हैं। केवल बाहर से शिरा, स्नायु, मांस आदि लिपट जाने से संघटित होती है। यह सबसे अधिक दुर्बल अस्थि-रचना है। धवला में इसकी तुलना परस्पर असंप्राप्त और शिराबद्ध सर्प की अस्थियों से की है। उपर्युक्त छ: प्रकार की अस्थि - रचना को अग्रांकित चित्र के माध्यम से सरलता से समझा जा सकता है 1. वजन नाराच संहनन 3. नाराच 6. सेवार्त । 2. ऋषम माराच संहनन 3. नाराच संहनन 4. अर्ध नाराच संहनन 5. कीलिका संहनन 6. सेवार्त संहनन अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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