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________________ प्राण-शक्ति का मूल स्रोत तैजस् शरीर है। यद्यपि यह सम्पूर्ण स्थूल शरीर में व्याप्त है फिर भी दो केन्द्र विशेष हैं- मस्तिष्क और पृष्ठभाग। वहां से निकलकर तैजस शक्ति शारीरिक क्रियाओं के संचालन में निमित्त बनती है। तैजस शरीर की प्राण-शक्ति एक होते हुए भी स्थूल शरीर के साथ मिलकर अनेक प्रकार के कार्य संपादित करती है। इसका अपना कोई निश्चित आकार-प्रकार नहीं है। औदारिक और वैक्रिय शरीर का जैसा आकार, प्रकार होता है वैसा ही इसका बन जाता है। योग के आचार्य इसे प्राणमय कोष तथा वैज्ञानिक ऊर्जा शरीर (Vital Body) और बायो इलेक्ट्रिकल प्लाज्मा कहते हैं। एक शब्द में कहे तो यह विद्युत शरीर है तथा ऊर्जा का असीम भंडार है। (5) कार्मण शरीर ___ कर्मों के सूक्ष्म-स्कंधों के संग्रहक शरीर का नाम कार्मण शरीर है। शरीर, इन्द्रिय, मन इत्यादि का मूल कारण तथा सब कर्मों का आधार, उत्पादक और सुख-दुःख का बीज यही शरीर है।20 नाड़ीतंत्र या मस्तिष्क के न्यूनाधिक विकास का कारण भी कर्मशरीर है। कार्मण शरीर संस्कारों का संवाहक शरीर है। ज्ञानावरण आदि कर्म- वर्गणा के सूक्ष्मतम परमाणुओं से इसका निर्माण होता है। औदारिक आदि शरीरों का निमित्त होने से उसे कारण शरीर भी कहा जाता है। यह सूक्ष्मतम शरीर है। कर्मशास्त्रीय दृष्टि से ज्ञान, दृष्टि, संवेदनशीलता, आसक्ति, शरीर-सौष्ठव, बाह्य परिवेश, विघ्न-बाधाएं और जीवन की अवधि आदि सभी का निर्धारक कार्मण शरीर है। आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार कार्मण शरीर का स्थूल शरीर में संवादी-तंत्र अन्तःस्रावी ग्रंथितंत्र है। अन्य शरीरों की तुलना में तैजस् और कार्मण शरीर प्रत्येक संसारी आत्मा से अनादि संलग्न हैं। कर्मों के अनुसार गति विशेष में जीव कभी औदारिक या वैक्रिय शरीर को प्राप्त करता है, कभी नहीं करता है और आहारक शरीर तो कादाचित्क है। लब्धिजन्य वैक्रिय शरीर भी कादाचित्क है किन्तु कार्मण और तैजस शरीर तो हमेशा प्राप्त रहते हैं। जब तक जीव मुक्त नहीं होता तब तक इनका योग सतत बना रहता है। जीव एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में कैसे प्रवेश कर सकता है ? यह समस्या कई आत्म - वादियों को भी उलझन में डाल देती है। किन्तु कार्मण शरीर का रहस्य ज्ञात होने पर समस्या स्वतः समाहित हो जाती है। क्रिया और शरीर-विज्ञान 315
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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