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________________ । (3) आहारक शरीर जिसके द्वारा आत्मा सूक्ष्म पदार्थों का आहरण करता है, उसको आहारक शरीर कहते हैं। यह संप्रेषण की अद्भुत क्षमता रखता है। आहारक शरीर एक विशिष्ट प्रकार की शारीरिक संरचना है। यह विशिष्ट लब्धि सम्पन्न चतुर्दशपूर्वी मुनि के द्वारा निर्मित होता है। विशेष उद्देश्य से आहारक लब्धि सम्पन्न मुनि अपने आत्म-प्रदेशों को बाहर प्रक्षेप कर आहारक शरीर का निर्माण करते हैं। आत्म-प्रदेश चौड़ाई और मोटाई में शरीर-प्रमाण तथा लम्बाई में संख्यात योजन प्रमाण दण्ड के रूप में होते हैं। सिद्धसेनगणी के अनुसार उस शरीर का जघन्य प्रमाण एकरत्नि (बंधी मुट्ठी वाले हाथ जितना होता है) और उत्कृष्ट पूरे हाथ प्रमाण होता है। आहारक शरीर अन्तर्मुहूर्त में ही अपना कार्य संपादित कर पुनः औदारिक शरीर में विलीन हो जाता है। धवला के अनुसार आहारक शरीर एक हस्त प्रमाण, सर्वांग सुन्दर, समचतुरस्र संस्थान से युक्त, हंस के समान धवल, रूधिर आदि सप्त धातुओं से रहित, विष, अग्नि, शस्त्र आदि समस्त बाधाओं से मुक्त और अव्याघाती है। इस शरीर से न हिंसात्मक प्रवृत्ति होती है और न यह सावध प्रवृत्ति से उत्पन्न होता है। न किसी का विनाश करता है और न किसी से विनष्ट होता है।13 आहारक शरीर निर्माण का प्रयोजन द्रव्य-संग्रह की टीका के अनुसार आहारक शरीर का प्रयोग करने वाला अपने मस्तिष्क से एक निर्मल स्फटिक जैसा अत्यन्त स्वच्छ एक हाथ का पुतला निकालता है। पुतले को वह तीर्थंकर के पास भेजता है। अपनी शंका का समाधान प्राप्त कर वह शरीर पुनः प्रयोक्ता के मूल शरीर में समाविष्ट हो जाता है। कदाचित् उस स्थान में तीर्थंकर न हो तो उस शरीर से पुन: एक दूसरे पुतले का निर्माण होता है। वह जहां तीर्थंकर होते हैं वहां जाता है। समाधान प्राप्त कर प्रथम पुतले में प्रविष्ट होता है। प्रथम पुतला प्रयोक्ता मुनि के औदारिक शरीर में विलीन हो जाता है। यह सारी क्रिया अत्यन्त शीघ्र सम्पादित हो जाती है। इस शरीर का कालमान अन्तर्मुहूर्त मात्र स्वीकृत है। आचार्य अकलंक ने आहारक समुद्घात के तीन प्रयोजनों का उल्लेख किया है (अ) आहारक लब्धि के सद्भाव का ज्ञान (ब) सूक्ष्म पदार्थ का निर्धारण (स) संयम - परिपालन15 क्रिया और शरीर - विज्ञान 313
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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