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________________ इनके अवान्तर भेद असंख्य भी बन जाते हैं। 62 प्रयोग, मिश्र और वैस्रसिक - ये सृष्टिरचना के आधारभूत परिणमन हैं। प्रथम दो परिणमन जीवकृत सृष्टि है। स्वाभाविक परिणमन अजीव कृत सृष्टि है। वर्ण आदि का परिणमन पुद्गल में स्वभावत: होता है। इसमें जीव का कोई सहयोग नहीं। 63 प्रयोग परिणमन बाह्य निमित्त निरपेक्ष है। वह जीव के आन्तरिक प्रयत्न जन्य है। मिश्र परिणमन में जीव के प्रयत्न के साथ बाह्य निमित्त का भी योग होता है। स्वाभाविक परिणमन जीव का प्रयत्न और निमित्त दोनों से निरपेक्ष है। 64 प्रयोग परिणमन से पुरुषार्थवाद और वैस्रसिक स्वभाव से स्वभाववाद फलित होता है। जैनदर्शन अनेकांतवादी है, अतः उसे दोनों मान्य है। वैस्रसिक और मिश्रपरिणमन का सिद्धांत कार्य-कारण के क्षेत्र में नई दृष्टि प्रदान करता है। विस्रसा परिणत द्रव्य कार्य- -कारण के नियम से मुक्त हैं। प्रयोग परिणत द्रव्य निमित्त कारण से मुक्त है। मिश्र परिणत द्रव्य में निर्वर्तक और निमित्त कारण का योग है। इस प्रकार जैनदर्शन में कार्य-कारण का सिद्धांत भी सापेक्ष है। कार्य-कारणवाद और सृष्टिवाद मीमांसा प्रयोग, मिश्र और स्वभावजन्य परिणमन के संदर्भ में की जा सकती है। परिणमन और काल परिवर्तन की इस श्रृंखला में काल भी निमित्त कारण है। काल स्वयं परिवर्तनशील है। अन्य द्रव्यों के परिणमन में उदासीन भाव से सहयोगी बनता है। काल के आश्रय से प्रत्येक द्रव्य अपने योग्य पर्यायों में परिणत होता रहता है इसलिए काल का लक्षण वर्तना किया गया है । 'वर्त्तनालक्षणो कालो । '65 वर्तना, परिणाम, क्रिया, परत्व और अपरत्व ये सब काल द्रव्य के उपकार हैं। " वस्तुतः वर्तना काल का उपलक्षण है। उसमें क्रिया, परत्व, अपरत्व आदि का अन्तर्भाव हो जाता है। वर्तनाशील होना, अर्थाभिव्यंजना है। उत्पत्ति, अप्रच्युति और विद्यमानता रूप क्रिया वर्तना है। कोई भी पदार्थ इससे पृथक् नहीं है। काल के निमित्त से प्रत्येक द्रव्य में निर्माण-ध्वंस सतत चलता है। काल का यही स्वरूप घटनाओं को जन्म देता है। काल पदार्थ मात्र के समस्त परिणमनों, क्रियाओं, घटनाओं में सहकारी कारण है। आधुनिक विज्ञान भी इस सत्य से सहमत है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक जीन्स का अभिमत है कि दृश्य जगत् की सारी क्रियाओं का एक मात्र मंच देश और काल है। देश और काल परस्पर स्वतंत्र सत्ताएं हैं। 67 रिमैन की ज्यामिति और आइंस्टीन के सापेक्षवाद में देश और काल भौतिक पदार्थ की रचना करने वाले तत्त्व सिद्ध होते हैं। काल के परत्व - अपरत्व लक्षण को कुछ क्रिया और परिणमन का सिद्धांत 305
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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