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________________ जैन दर्शन के मुख्य सिद्धांत न केवल अहिंसा, अनेकान्त और अपरिग्रह है अपितु कर्मवाद, पुनर्जन्म आदि भी हैं। कर्मवाद का सूक्ष्म और गहन विश्लेषण जैन चिन्तन में ही दृष्टिगोचर होता है। क्रिया का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि कर्म क्रिया का उपजीवी है। आचारांग भाष्य में आचार्य महाप्रज्ञ लिखते हैं-आत्मा और कर्म का सम्बन्ध क्रिया के द्वारा ही होता है। जब तक आत्मा में राग-द्वेष जनित प्रकम्पन विद्यमान हैं, तब तक उसका कर्म परमाणुओं के साथ सम्बन्ध होता रहता है। इसलिए कर्मवाद क्रियावाद का उपजीवी है। इसके अतिरिक्त, भारतीय चिन्तन में एक बद्धमूल अवधारणा रही है कि 'मन एव मनुष्याणां कारणं बंध-मोक्षयोः अर्थात् मन ही हमारी सारी अच्छी-बुरी प्रवृत्तियों का मूल है। भारतीय चिन्तन में मन के नियन्त्रण की बहुत चर्चा मिलती है। भगवान बुद्ध ने इसीलिए एक ही दण्ड माना और वह है मनोदण्ड। गीता में मन की गति को वायु से भी अधिक चंचल बतलाते हुए यह प्रश्न किया गया है कि मन को कैसे रोकें। कृष्ण ने अभ्यास और वैराग्य की लगाम से मन पर नियन्त्रण की बात कही - चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवदृढम्। तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्।। असंशयं महाबाहो मनोदुर्निग्रहं चलम्। अभ्यासेन तु कौन्तेय ! वैराग्येण च गृहाते।। (गीता 6/34-35) किन्तु क्या केवल मन का नियन्त्रण पर्याप्त है ? मन की चंचलता में शरीर और वाणी की कोई भूमिका नहीं है? मन के नियंत्रण के लिए भाषा-विवेक और शारीरिक क्रियाओं के नियमन की कोई आवश्यकता नहीं है? मन की चंचलता के अभाव में भाषा और शरीर से भी कुछ प्रवृत्तियां नहीं होती हैं? मन के न चाहने पर भी कुछ अनुचित कार्य हो जाते हैं, उसका क्या कारण है? जैसा कि अर्जुन श्री कृष्ण से पूछते हैं अथकेन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पुरूषः। अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय ! बलादिव नियोजितः। (गीता 6/36) इससे यह फलित होता है कि मन से आगे भी कोई संचालक शक्ति है। यह बात इसलिए भी सत्य प्रतीत होती है कि प्राणी जगत् का बहुत बड़ा हिस्सा ऐसा है जिसमें मन नहीं है। फिर भी उसमें क्रिया पाई जाती है। कर्माकर्षण भी होता है और परिणाम-स्वरूप वे प्रागी जन्म-मृत्यु की प्रक्रिया से भी गुजरते हैं, अनुकूल और प्रतिकूल संवेदनों का अनुभव XXXII
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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