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________________ संस्थान के अनन्त भेद हो सकते हैं। संक्षिप्त में इसके दो प्रकार हैं- इत्थं संस्थान, अनित्थं संस्थान। इत्थं संस्थान- इत्थं अर्थात् जिसका निश्चित आकार है, वह इत्थं संस्थान है। उसके मुख्य पांच प्रकार है जिन्हें निम्नांकित चित्र में दर्शाया गया है त्रिकोण संस्थान परिमण्डल संस्थान चतुष्कोण संस्थान चतुष्कोण संस्थान संस्थान आयत संस्थान आयत संस्थान अनित्थं संस्थान- जिसका कोई निश्चित आकार नहीं। उसे अनगढ़ आकार भी कहा जा सकता है।28 जीवों के संदर्भ में भी संस्थान की चर्चा मिलती है। वहां संस्थान का अर्थ अस्थि-रचना विशेष है। उसके छ: प्रकार हैं। समचतुरस्र, न्यग्रोध, सादि, वामन, कुब्ज और हुण्डका (4) भेद- 'विश्लेषः भेदः' भेद का अर्थ है- विश्लेषा स्कंध का अनेक स्कंधों में अथवा परमाणुओं में विभक्त हो जाना भेद है । यह विघटन वैनसिक और प्रायोगिक के भेद से दो प्रकार का है। स्वाभाविक विघटन वैनसिक है। विज्ञान जगत् में रेडियो धर्मी तत्त्वों में से विकिरण का उत्सर्जन भी वैनसिक भेद का उदाहरण हैं। वायु, वर्षा, जल-प्रवाह आदि नैसर्गिक परिबलों द्वारा होने वाला विघटन भी इस कोटि में समाविष्ट है। प्रयत्न से किसी वस्तु या स्कन्ध का विभाजन प्रायोगिक है। निमित्त की विविधताओं के कारण भेद के पांच प्रकार किये गये हैं30 तत्त्वार्थ सूत्र की टीका 'सर्वार्थ सिद्धि' में भेद के छः प्रकार भी मिलते हैं(1) उत्कर- टूट-टूट कर ऊंचा उठे, वह उत्कर कहलाता है। जैसे मूंग की फली का टूटना। (2) चूर्ण- टूटने पर चूर्ण हो जाना चूर्ण कहलाता है। जैसे गेहूं आदि का आटा। क्रिया और परिणमन का सिद्धांत 293
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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