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________________ जागोरस के अनुसार पृथ्वी, जल, अग्नि, और वायु, स्वयं भी मूल तत्त्व न होकर मूल द्रव्यों के मिश्रण से निर्मित तत्त्व हैं। د यूनान के दार्शनिक हेराक्लाइट्स के विचारों में सब कुछ प्रवाह मात्र है। जल में लहरें समान प्रतीत होने पर भी प्रतिक्षण पूर्व लहरों का तिरोभाव और नई लहरों का आविर्भाव हो रहा है। प्रत्येक वस्तु उस क्षण में है भी और नहीं भी । लाइब्नीज के अभिमत से दृश्य-पदार्थ का मूल परमाणु है। मौलिक कण समुदित होकर पदार्थ का निर्माण करते हैं। बाह्य निमित्त या निश्चित कालावधि के बाद एक पदार्थ दूसरे पदार्थ में रूपान्तरित हो जाता है। आइंस्टीन ने परमाणु में प्रमुख रूप से तीन तत्त्व स्वीकार किये है। परमाणु गतिशील होते हैं। वे तत्त्व है - 1. गति, 2. कंपन, 3. उल्लास। आइंस्टीन के अनुसार इनका सापेक्ष सम्बन्ध ही सत्य है। 10 पदार्थ की विविधता और परिणमन पदार्थ की विविधता का कारण परिणमन की विविधता है। पदार्थ का स्वरूप ठोस है। भौतिक विज्ञान की इस मान्यता से क्वाटम सिद्धांत सहमत नहीं। उसके अनुसार ब्रह्माण्ड में व्याप्त छोटे-छोटे कण कभी कण रूप में दिखाई देते हैं तो कभी ठोस रूप में। एक ही प्रकार के कण भी सदा एक समान व्यवहार नहीं करते। भिन्न-भिन्न समय में उनका भिन्न-भिन्न व्यवहार देखा जाता है। इसके अलावा कुछ परिणमन सांयोगिक होते हैं। स्वाभाविक दशा में जो गुणधर्म नहीं दिखायें देते हैं, वे संयुक्त दशा में प्रकट होते हैं। उदाहरणार्थ- भार एक ऐसा गुण है जो पृथक्-पृथक् परमाणुओं में दिखाई नहीं देता किन्तु संयुक्त दशा में दिखाई देता है। परमाणु और पुद्गल के सूक्ष्म स्कंध भारहीन होते हैं। उही परमाणुओं तथा पुद्गल स्कंधों का जब स्थूल परिणमन होता है तब उनमें भार की अवस्था उत्पन्न होती है। इस प्रकार परिणमन की विविधता पदार्थ जगत् की विविधता का मूल कारण है। परिणमन के प्रकार पदार्थ का परिणमन स्वाभाविक और वैभाविक दो प्रकार का होता है। स्वाभाविक परिणमन क्षणवर्ती, अव्यक्त और सूक्ष्म होता है। जल और तरंग की भांति पदार्थ और स्वाभाविक परिणमन पृथक् नहीं है। यह सार्वभौम है। वैभाविक परिणमन कादाचित्क और दीर्घकालिक तथा अल्पकालिक दोनों हो सकता है। मुक्त आत्माओं और धर्मादि क्रिया और परिणमन का सिद्धांत 285
SR No.032421
Book TitleAhimsa ki Sukshma Vyakhya Kriya ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaveshnashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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